विकास निधि में देरी के चलते अपने को घिरा हुआ पा रहे विधायक
हैदराबाद। राज्य के विधायकों, खास तौर पर सत्तारूढ़ पार्टी के विधायकों में असंतोष पनप रहा है, जो निर्वाचन क्षेत्र विकास निधि (सीडीएफ) जारी होने में देरी के कारण खुद को लगातार घिरा हुआ पा रहे हैं। वे नौकरशाही बाधाओं और “मंत्रालयी गेटकीपिंग” का हवाला दे रहे हैं, जो बुनियादी लेकिन महत्वपूर्ण स्थानीय कार्यों को रोक रहा है, जिससे पिछले वित्तीय वर्ष से 1,190 करोड़ रुपये का एक बड़ा हिस्सा अप्रयुक्त रह गया है। सत्ता में आए करीब डेढ़ साल हो गए हैं, लेकिन कांग्रेस सरकार अभी तक विधायकों को विकास के लिए सार्थक फंड मुहैया नहीं करा पाई है।
सीडीएफ की जगह विशेष विकास कोष
दिसंबर 2023 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने जनवरी 2024 में सीडीएफ की जगह विशेष विकास कोष लाने और हर विधानसभा क्षेत्र के लिए सालाना 10 करोड़ रुपये आवंटित करने की बड़ी घोषणा की, यानी 2024-25 के लिए कुल 1,190 करोड़ रुपये। हालांकि, जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है। कई इलाकों में कोई खास काम नहीं हुआ है, क्योंकि फंड प्रस्तावों को अभी भी जिला प्रभारी मंत्रियों से मंजूरी की जरूरत है, विधायकों का कहना है कि इस व्यवस्था से अनावश्यक देरी और राजनीतिक परेशानी हो रही है।
विकास जमीनी स्तर पर नहीं
सूत्रों ने बताया कि पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान औसतन हर निर्वाचन क्षेत्र में 1.5 करोड़ रुपये का भी विकास जमीनी स्तर पर नहीं हुआ है। विपक्षी विधायकों और एमएलसी के प्रतिनिधित्व वाले निर्वाचन क्षेत्रों में स्थिति और भी खराब है। सड़क मरम्मत से लेकर पेयजल बोरवेल तक, सबसे बुनियादी काम भी लालफीताशाही में फंसे हुए हैं। एक असंतुष्ट विधायक ने कहा कि हम मंत्रियों के चक्कर लगाए बिना छोटी-छोटी परियोजनाओं को भी मंजूरी नहीं दे पा रहे हैं।
स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं से संपर्क खो देंगे
अगर ऐसा ही चलता रहा तो लोग हमें अपने ही गांवों में वापस नहीं आने देंगे। अन्य लोगों को डर है कि वादे पूरे न कर पाने की वजह से वे स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं से संपर्क खो देंगे। यह स्थिति पिछली बीआरएस सरकार से बिलकुल अलग है, जहां पार्टी से जुड़े लोगों की परवाह किए बिना सभी विधायकों और एमएलसी को विकास निधि जारी की जाती थी। बीआरएस सरकार के दौरान, तत्कालीन मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने एमपीएलएडी के बराबर बजट आवंटन को बढ़ाकर 5 करोड़ रुपये सालाना कर दिया था।
जिला कलेक्टरों द्वारा जारी की जाती थी निधि
विधायकों द्वारा अनुशंसित कार्यों के लिए जिला कलेक्टरों द्वारा निधि जारी की जाती थी। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि मौजूदा कांग्रेस विधायक, जिनमें से कई ने अपनी सीट जीतने के लिए करोड़ों खर्च किए हैं, अपने ही नेतृत्व द्वारा धोखा महसूस करने लगे हैं। एक अन्य वरिष्ठ विधायक ने कहा कि इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि अगर विकास जल्द ही गति नहीं पकड़ता है, तो पार्टी को अगले चुनाव में इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी।
सीधे उनके नियंत्रण में रखी जाए 10 करोड़ रुपये की राशि
कई विधायक अब खुलेआम मांग कर रहे हैं कि प्रति निर्वाचन क्षेत्र 10 करोड़ रुपये की राशि सीधे उनके नियंत्रण में रखी जाए, चेतावनी देते हुए कि इसके बिना, जमीनी स्तर पर प्रतिनिधित्व का उद्देश्य ही विफल हो जाएगा। उन्हें डर है कि अगर यह प्रवृत्ति जारी रही, तो वे अपने मूल कार्यकर्ताओं की वफ़ादारी भी नहीं बचा पाएंगे, 2028 में मतदाताओं का सामना करना तो दूर की बात है।
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