नई दिल्ली, 20 सितंबर 2025: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (Donal trump) द्वारा H-1B वीजा पर अनुप्रयोगों के लिए प्रति वर्ष 1,00,000 डॉलर (लगभग 84 लाख रुपये) की भारी फीस लगाने के फैसले ने वैश्विक आईटी उद्योग में हलचल मचा दी है। यह कदम 21 सितंबर 2025 से लागू हो जाएगा और इसका उद्देश्य अमेरिकी श्रमिकों को विदेशी मजदूरों से प्रतिस्थापित होने से बचाना है।
हालांकि, भारत के प्रमुख उद्योगपति और पूर्व इंफोसिस सीएफओ टीवी मोहनदास पाई का मानना है कि इस फीस वृद्धि से भारतीय आईटी कंपनियों को लंबे समय में फायदा हो सकता है, क्योंकि यह ऑफशोरिंग को बढ़ावा देगी।
फीस वृद्धि का पृष्ठभूमि
ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा कार्यक्रम में व्यापक सुधार की घोषणा की है, जिसमें नई आवेदनों और विस्तार के लिए 1,00,000 डॉलर की वार्षिक फीस शामिल है। यह फीस तीन वर्षों की अवधि के लिए लागू होगी, जो कुल मिलाकर 3 लाख डॉलर तक पहुंच सकती है। H-1B वीजा उच्च कुशल विदेशी श्रमिकों के लिए है, जिसमें भारतीय पेशेवरों की हिस्सेदारी सबसे अधिक (लगभग 71%) है। यह कदम अमेरिकी तकनीकी कंपनियों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है, जो भारत और चीन जैसे देशों से हजारों कर्मचारियों को नियुक्त करती हैं। पहले छमाही 2025 में ही अमेज़न को 12,000 से अधिक H-1B वीजा स्वीकृति मिली थी, जबकि माइक्रोसॉफ्ट और मेटा को 5,000 से ज्यादा।
भारत को कैसे फायदा? पाई की आर्थिक सलाह
पूर्व इंफोसिस सीएफओ और उद्योग विशेषज्ञ मोहनदास पाई ने कहा कि यह फीस वृद्धि नई H-1B आवेदनों को कम कर देगी, जिससे कंपनियां अमेरिका में भर्ती के बजाय काम को भारत जैसे कम लागत वाले देशों में शिफ्ट करने पर जोर देंगी। पाई ने कहा, “अब सब ऑफशोरिंग बढ़ाने पर काम करेंगे… क्योंकि पहले तो टैलेंट नहीं मिलेगा, दूसरा लागत बहुत ज्यादा हो जाएगी। यह अगले 6-12 महीनों में होगा।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि H-1B पर भर्ती होने वाले कर्मचारियों की औसत सैलरी 1,00,000 डॉलर से अधिक है, इसलिए “सस्ते श्रम” का आरोप गलत है।
पाई के अनुसार, भारतीय आईटी फर्मों की H-1B पर निर्भरता पहले ही कम हो चुकी है, और अब यह बदलाव अमेरिकी नवाचार को धीमा कर सकता है, जबकि भारत में अधिक नौकरियां और विकास के अवसर पैदा होंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि अमेरिका शीर्ष टैलेंट खोने का जोखिम उठा रहा है, जो कनाडा या यूरोप जैसे देशों की ओर रुख कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद का संदर्भ
हालांकि पाई पीएमईएसी (प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद) के सदस्य नहीं हैं, लेकिन उनका बयान आर्थिक नीतियों पर विशेषज्ञ सलाह के रूप में महत्वपूर्ण है। पीएमईएसी के पूर्व अध्यक्ष बिबेक देबरॉय (जिनका निधन 2024 में हो चुका है) ने हमेशा वैश्विक व्यापार और श्रम प्रवास पर भारत-केंद्रित नीतियों की वकालत की थी। पाई का दृष्टिकोण इसी सोच को प्रतिबिंबित करता है, जहां फीस वृद्धि को भारत की अर्थव्यवस्था के लिए “गेम-चेंजर” माना जा सकता है।
प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं
- भारतीय आईटी कंपनियों पर असर: इंफोसिस, विप्रो और टीसीएस जैसी कंपनियों के शेयरों में 2-5% की गिरावट देखी गई, लेकिन लंबे समय में ऑफशोरिंग से लाभ।
- अमेरिकी अर्थव्यवस्था: स्टार्टअप्स और छोटी कंपनियां प्रभावित होंगी, जबकि बड़ी टेक फर्में जैसे गूगल और अमेज़न कानूनी चुनौतियां दे सकती हैं।
- भारत के लिए अवसर: अधिक कुशल श्रमिकों की वापसी और घरेलू आईटी हब का मजबूतीकरण, जो “मेक इन इंडिया” को गति देगा।
यह फैसला अमेरिका-भारत आर्थिक संबंधों में नया मोड़ ला सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत सरकार को अब कुशल प्रवासियों की वापसी के लिए नीतियां मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए।