Indira Ekadashi: इंदिरा एकादशी कब है और इसका क्या महत्व है?

By Dhanarekha | Updated: September 9, 2025 • 5:50 PM

हिंदू धर्म में इंदिरा एकादशी(Indira Ekadashi) का बहुत महत्व है, जो पितृपक्ष में आती है। इस एकादशी को अत्यंत पवित्र(Extremely Sacred) और महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पुण्य कर्म करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और उनके पापों का नाश होता है। इस साल, इंदिरा एकादशी(Indira Ekadashi) का व्रत और श्राद्ध कर्म 17 सितंबर, 2025 को किया जाएगा। इस दिन गौरी योग का शुभ संयोग भी बन रहा है, जिससे इस व्रत का फल कई गुना बढ़ जाएगा

व्रत की तिथि और शुभ योग

पंचांग के अनुसार, 16 सितंबर की रात 12:23 बजे से एकादशी(Indira Ekadashi) तिथि शुरू होगी और 17 सितंबर की रात 11:40 बजे तक रहेगी। शास्त्रों के अनुसार, एकादशी का व्रत उस दिन किया जाता है जब तिथि सूर्योदय के समय मौजूद हो, इसलिए यह व्रत 17 सितंबर को ही रखा जाएगा। इस दिन(Indira Ekadashi) चंद्रमा अपनी स्वराशि कर्क में विराजमान रहेंगे, जिससे गौरी योग का शुभ संयोग बनेगा। इस योग में व्रत और श्राद्ध कर्म(Shraddha rituals) करने वालों को विशेष पुण्य फल की प्राप्ति होगी।

पितरों की शांति के लिए करें ये काम

इंदिरा एकादशी(Indira Ekadashi) पर व्रत करने के अलावा कुछ खास काम करने से भी पितरों को शांति मिलती है। अगर आप व्रत नहीं रख पा रहे हैं, तो भगवान विष्णु की पूजा जरूर करें। इस दिन काले तिल से तर्पण करने का विशेष महत्व है, जिससे पितरों को मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, पितरों के नाम से दान-पुण्य जरूर करना चाहिए, जैसे कि किसी जरूरतमंद को भोजन या वस्त्र दान करना। इन कार्यों से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और व्यक्ति को सुख-समृद्धि, शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।

इंदिरा एकादशी का व्रत रखने से क्या लाभ होता है?

इस एकादशी(Indira Ekadashi) का व्रत रखने से पितरों के पापों का नाश होता है और उन्हें नरक से मुक्ति मिलती है। इस व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति को सुख, समृद्धि, शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है, और मृत्यु के बाद उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।

अगर कोई व्रत न करे, तो वह पितरों की शांति के लिए क्या कर सकता है?

कोई इंदिरा एकादशी(Indira Ekadashi) का व्रत नहीं कर पा रहा है, तो भी वह भगवान विष्णु की पूजा कर सकता है, काले तिल से तर्पण कर सकता है, और पितरों के नाम पर दान-पुण्य कर सकता है। इन कार्यों से भी पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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