अमेरिका द्वारा क़ीमत लागू करने का सीधा असर उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ेगा। निपुण के अनुसार, एक से दो महीनों के भीतर आम उपभोक्ता को दर में बढ़ती दिखने लगेगी। कुछ उत्पाद, खासकर मैक्सिको से आयातित वस्तुएं, जैसे कि फल और सब्जियां, मूल्य लागू होते ही महंगे हो सकते हैं।
हालांकि, कुछ खुदरा विक्रेता और कंपनियां इस अतिरिक्त क़ीमत का कुछ हिस्सा खुद वहन कर सकती हैं, जबकि कुछ विदेशी निर्यातक अपनी कीमतें कम करके इस प्रभाव को संतुलित करने की कोशिश कर सकते हैं। लेकिन 20% तक की क़ीमत वृद्धि इतनी अधिक है कि अधिकांश कारोबार के लिए कीमतें बढ़ाना ही एकमात्र विकल्प होगा। इससे पहले भी 2018 में जब वाशिंग मशीनों पर टैरिफ लगाया गया था, तो खुदरा विक्रेताओं ने न सिर्फ वॉशिंग मशीन, बल्कि ड्रायर की कीमतें भी बढ़ा दी थीं, जबकि ड्रायर पर कोई अतिरिक्त क़ीमत नहीं लगाया गया था।
अब सवाल यह है कि क्या आने वाले महीनों में भी ऐसा ही होगा? अर्थतज्ज्ञ का मानना है कि अमेरिका उपभोक्ता पहले से ही महंगाई के दबाव में हैं, और अगर कीमतें और बढ़ती हैं, तो वे अपनी खर्च करने की आदतों में कमी कर सकते हैं। इससे कंपनियों के लिए दाम बढ़ाना कठिन हो सकता है, जिससे अमेरिकी अर्थतज्ज्ञ पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
अमेरिका क़ीमत नीति और इसके प्रभाव
अमेरिका संविधान के अनुसार, क़ीमत निर्धारित करने की शक्ति कांग्रेस के पास है, लेकिन साल से यह शक्ति अलग-अलग कानूनों के माध्यम से राष्ट्रपति को सौंप दी गई है। आमतौर पर, राष्ट्रपति क़ीमत तब लागू कर सकते हैं जब कोई आयात राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बने या किसी असाधारण कोशिश को गंभीर नुकसान हो।
पहले के राष्ट्रपतियों ने क़ीमत लगाने से पहले सार्वजनिक सुनवाई की प्रक्रिया अपनाई थी, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में क़ीमत लगाने के लिए आपातकालीन शक्तियों का प्रयोजन किया। उदाहरण के लिए, उन्होंने कनाडा और मैक्सिको से आने वाले फेंटानिल को राष्ट्रीय आपातकाल बताते हुए 25% क़ीमत लगा दिया।
अमेरिका में क़ीमत दरें औसतन 2.2% हैं, जबकि अन्य देशों में यह अधिक है। यूरोपीय संघ में औसतन 2.7%, चीन में 3%, और भारत में 12% क़ीमत है। कृषि उत्पादों पर क़ीमत की तुलना करें तो अमेरिका में यह 4% है, जबकि भारत में 65%, चीन में 13.1%, और जापान में 12.6% है।
अमेरिका में कुछ व्यापार समझौतों, जैसे अमेरिका-मैक्सिको-कनाडा समझौता, के तहत सीमाओं पर बिना क़ीमत वस्तुओं का आदान-प्रदान किया जाता है। हालाँकि, नए क़ीमत लागू होने से आयातित वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं और कारखाने पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ेगा।