प्रीमियम में तीन से पांच प्रतिशत बढ़ोतरी
नई दिल्ली: हाल ही में जीएसटी काउंसिल की बैठक में जीवन बीमा(Life Insurance) और स्वास्थ्य बीमा(Health Insurance) प्रीमियम पर 18% की दर से लगने वाले कर को पूरी तरह खत्म करने पर सहमति बनी थी। शुरुआत में माना गया कि इससे ग्राहकों को बड़ी राहत मिलेगी और प्रीमियम 18% तक घट जाएगा। मगर कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज रिसर्च की नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि यह कदम उल्टा असर डाल सकता है और ग्राहकों को बीमा पॉलिसियों के लिए अधिक प्रीमियम चुकाना पड़ सकता है।
रिपोर्ट के निष्कर्ष और विशेषज्ञों की राय
रिपोर्ट में कहा गया है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट(ITC) न मिलने के कारण बीमा कंपनियां अपनी दरों में 3-5% तक बढ़ोतरी कर सकती हैं। अभी कंपनियां ग्राहकों से वसूले गए जीएसटी(GST) का एक हिस्सा ITC के जरिए समायोजित करती हैं, जिससे उन्हें राहत मिलती है। लेकिन जीएसटी हटने के बाद यह लाभ खत्म हो जाएगा। इसलिए कंपनियां घाटा पूरा करने के लिए प्रीमियम महंगा करने पर मजबूर हो सकती हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार का यह निर्णय बीमा की मांग को बढ़ा सकता है, क्योंकि समग्र लागत लगभग 12-15% तक घट सकती है। हालांकि, उपभोक्ताओं को मिलने वाला यह लाभ कंपनियों की ओर से प्रीमियम बढ़ाने की वजह से सीमित रह सकता है। ऐसे में पॉलिसीधारकों को उम्मीद के विपरीत जेब पर ज्यादा बोझ उठाना पड़ सकता है।
आईटीसी का असर और भविष्य की स्थिति
बीमा(Insurance) कंपनियां वर्तमान में डिस्ट्रीब्यूटर्स का कमीशन, पुनर्बीमा और प्रचार जैसे खर्चों पर ITC का दावा करती हैं। यह सुविधा हर साल करोड़ों रुपये की बचत कराती है। जीएसटी हटने से यह दावा समाप्त हो जाएगा, जिससे कंपनियों की लागत बढ़ेगी। हालांकि, पुनर्बीमा सेवाओं पर कर छूट जारी रहेगी, लेकिन अन्य खर्चों पर टैक्स का बोझ बना रहेगा।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मार्जिन न्यूट्रल रहने के लिए कंपनियों को नई और पुरानी खुदरा पॉलिसियों में टैरिफ 3-5% तक बढ़ाना पड़ सकता है। इस स्थिति में ग्राहक भले ही कर से मुक्त हो जाएं, पर बीमा की दरें पहले से अधिक हो सकती हैं। परिणामस्वरूप बाजार में बीमा की मांग धीरे-धीरे ही गति पकड़ पाएगी।
हेल्थ इंश्योरेंस पर जीएसटी हटने के बावजूद प्रीमियम क्यों बढ़ सकता है?
जीएसटी हटने से कंपनियों को इनपुट टैक्स क्रेडिट(ITC) का लाभ नहीं मिलेगा। इस कमी को पूरा करने के लिए वे प्रीमियम दरों में 3-5% तक वृद्धि कर सकती हैं, जिससे ग्राहकों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
बीमा पॉलिसीधारकों को इस बदलाव से क्या असर होगा?
ग्राहकों को उम्मीद थी कि प्रीमियम घटेगा, लेकिन वास्तविकता में कंपनियों की लागत बढ़ने से दरें महंगी हो सकती हैं। हालांकि लागत में कमी आने से लंबी अवधि में बीमा की मांग में धीरे-धीरे सुधार संभव है।
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