Breaking News: Nepal: नेपाल में ओली के खिलाफ गिरफ्तारी की मांग

By Dhanarekha | Updated: September 21, 2025 • 11:28 AM

गोलीकांड और भ्रष्टाचार पर बढ़ा दबाव

काठमांडू: काठमांडू में हाल ही के Gen-G प्रदर्शनों के बाद नेपाल(Nepal) के पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली(KP Sharma Oli) की मुश्किलें बढ़ गई हैं। प्रदर्शनकारियों ने ओली और तत्कालीन गृह मंत्री रमेश लेखक(Ramesh Lekhak) की गिरफ्तारी की मांग की है। उनका आरोप है कि 8 सितम्बर को हुई गोलीबारी में इन नेताओं की भूमिका रही, जिसमें दर्जनों लोग मारे गए। ओली ने आरोपों से इनकार किया है, लेकिन जनआक्रोश लगातार तेज हो रहा है

विरोध प्रदर्शनों से उभरी सख्त मांगें

Gen-G समूह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि न सिर्फ ओली और लेखक बल्कि काठमांडू के जिलाधिकारी छवि रिजाल को भी गिरफ्तार किया जाना चाहिए। उन्होंने 1990 के बाद से सभी शीर्ष नेताओं और अफसरों की संपत्ति की जांच के लिए उच्च स्तरीय आयोग गठित करने की मांग रखी। समूह के सलाहकार डॉ. निकोलस बुशल ने कहा कि गोलीबारी में मारे गए 19 कार्यकर्ताओं की मौत का सीधा जिम्मेदार यही नेतृत्व है।

मैतीघर मंडला में धरना देकर कार्यकर्ताओं ने इन नेताओं की गिरफ्तारी पर जोर डाला। इस बीच, हिंसक झड़पों में 72 लोग मारे गए जिनमें पुलिसकर्मी भी शामिल थे। प्रदर्शन का बड़ा कारण भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध था।

ओली का बचाव और ताजा हालात

पद छोड़ने के बाद पहली बार सार्वजनिक रूप से सामने आए ओली ने सफाई दी कि उन्होंने किसी गोलीकांड का आदेश नहीं दिया। उनके अनुसार, प्रदर्शनकारियों पर जिस प्रकार की स्वचालित गोलियां चलीं, वैसा हथियार पुलिस के पास नहीं था। उन्होंने हिंसा के लिए घुसपैठियों को जिम्मेदार ठहराया और स्वतंत्र जांच की मांग की।

नेपाल(Nepal) में अब धीरे-धीरे सामान्य स्थिति लौट रही है। सुषमा कार्की ने 12 सितम्बर को अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली, जिसके बाद कर्फ्यू में ढील दी गई। सेना ने भी सड़कों से अपनी उपस्थिति घटाई और बाजारों में रौनक लौटने लगी है।

क्या ओली और लेखक की गिरफ्तारी जल्द होगी?

फिलहाल सरकार दबाव में जरूर है, लेकिन गिरफ्तारी का फैसला जांच आयोग और राजनीतिक सहमति पर निर्भर करेगा। प्रदर्शनकारियों का दबाव बना हुआ है, जिससे सरकार पर त्वरित कदम उठाने की आशंका बनी है।

नेपाल में अशांति का प्रमुख कारण क्या रहा?

अशांति की शुरुआत भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया प्रतिबंध के विरोध से हुई। बाद में गोलीबारी और मौतों ने हालात बिगाड़ दिए। जनता का गुस्सा नेताओं और प्रशासन की जवाबदेही की ओर केंद्रित हो गया।

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