वॉशिंगटन । वैज्ञानिकों की एक टीम कैलिफ़ोर्निया, एरिज़ोना और मेक्सिको की सीमा पर फैले एल्गोडोन्स ड्यून क्षेत्र में काम कर रही है। टेक्सास ए एंड एम यूनिवर्सिटी (Texas A and M University) के रिसर्च स्कॉलर और उनके प्रोफेसर के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की टीम ने मंगल ग्रह के रहस्यमय भूगोल और वहां के भविष्य के मानव मिशन को सुरक्षित बनाने के लिए एक नया तरीका खोज निकाला है। वैज्ञानिक यहां के रेतीले टीलों और उनकी लहरदार संरचनाओं की स्टडी करके यह समझना चाहते हैं कि मंगल ग्रह पर हवा, रेत और वातावरण किस तरह से भूगर्भीय आकृतियां बनाते हैं। इसके लिए टीम ड्रोन और जीपीएस तकनीक (GPS Technique) की मदद से रेगिस्तान में रेत की लहरों की ऊंचाई, चौड़ाई और उनके बीच की दूरी का सटीक माप ले रही है।
मंगल के ऑर्बिटर द्वारा ली गई तस्वीरों से मिलाया जाएगा
इन आंकड़ों को मंगल के ऑर्बिटर द्वारा ली गई तस्वीरों से मिलाया जाएगा। इस तुलना के जरिए वैज्ञानिक यह पता लगाना चाहते हैं कि पृथ्वी और मंगल पर एक जैसी या अलग तरह की रेत की लहरें कैसे बनती हैं और उनके पीछे कौन-कौन से कारक काम करते हैं। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने रेत के कणों के आकार, हवा के दबाव और मौसम की भूमिका पर भी गहन नजर डाली है। टीम द्वारा जुटाए गए आंकड़ों से एक हाई-रेजोल्यूशन कंप्यूटर मॉडल तैयार किया जा रहा है, जो मंगल की सतह पर पाए जाने वाले ‘कंपाउंड ड्यून’ की पहचान में मदद करेगा। ये ड्यून वह जगहें हैं जहां रेत की कई परतें और आकृतियां एक साथ बनती हैं।
इस रिसर्च का उद्देश्य सिर्फ वैज्ञानिक उत्सुकता तक सीमित नहीं है
खास बात यह है कि रिसर्च टीम (Reasearch Team) के इस काम की जड़ें नासा की जेट प्रोपुल्सन लेबोरेट्री में हुई एक इंटर्नशिप से जुड़ी हैं। वहां एक छात्र को परसेवरांस रोवर की सुरक्षित लैंडिंग साइट चुनने के दौरान मंगल की रेत की लहरों में दिलचस्पी पैदा हुई थी। वही रुचि अब उसके पीएचडी प्रोजेक्ट तक पहुंच गई है, जिसमें वह मंगल ग्रह पर मौजूद सभी प्रमुख ड्यून का एक बड़ा डेटाबेस तैयार कर रहा है। इस रिसर्च का उद्देश्य सिर्फ वैज्ञानिक उत्सुकता तक सीमित नहीं है।
असल में, इसका एक बड़ा मकसद भविष्य के मानव मिशनों के लिए ऐसी जगहें चिन्हित करना है जहां डस्ट स्टॉर्म और रेत के तेज़ी से बदलते पैटर्न से खतरा न हो। मंगल की रेत की लहरें रोवर्स को फंसा सकती हैं और मानव बेस कैंप को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसलिए यह रिसर्च भविष्य में मंगल पर सुरक्षित मानव उपस्थिति की योजना बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है।
मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला पहला देश कौन सा था?
ग्रह पर पहुंचने वाला पहला देश संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) है। नासा ने 1964 में मेरिनर 4 अंतरिक्ष यान को मंगल ग्रह के पास से सफलतापूर्वक उड़ाया, जो इस उपलब्धि को हासिल करने वाला पहला देश बन गया.
मंगल की 5 विशेषताएं क्या हैं?
मंगल की सामान्य सतह विशेषताओं में गहरे ढलान वाली धारियाँ , धूल के निशान, रेत के टीले ,मेडुसे फोसा संरचना , झल्लाहट वाले इलाके , परतें, नाले, ग्लेशियर, स्कैलप्ड स्थलाकृति , अव्यवस्थित इलाके , संभव प्राचीन नदियाँ, पेडेस्टल क्रेटर , मस्तिष्क इलाके और रिंग मोल्ड क्रेटर शामिल हैं ।
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