नामित अमेरिकी राजदूत ने दिए संकेत
वॉशिंगटन: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप(Trump) इस साल के आखिर में भारत में होने वाली QUAD बैठक में हिस्सा लेने आ सकते हैं। भारत के लिए नामित अमेरिकी राजदूत सर्जियो गोर(Sergio Gor) ने सीनेट की सुनवाई के दौरान यह जानकारी दी। गोर ने स्पष्ट कहा कि वॉशिंगटन(Washington) क्वाड को और मजबूत बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। साथ ही उन्होंने भारत को रूसी तेल खरीद बंद करने की सख्त सलाह दी।
ट्रंप की यात्रा और रणनीतिक साझेदारी
सर्जियो गोर(Sergio Gor) ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप पहले से ही क्वाड शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए सहमत हैं। उन्होंने बताया कि भारत और अमेरिका कई मुद्दों पर प्रगति कर रहे हैं और अगली बैठक से दोनों देशों के बीच सहयोग और गहरा होगा। इसके अलावा उन्होंने भारत को एक अहम रणनीतिक साझेदार बताया, जो इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के साथ-साथ वैश्विक स्तर पर भी निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
उन्होंने यह भी खुलासा किया कि आने वाले दिनों में एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल वाशिंगटन जाएगा। इस दौरान रक्षा और व्यापार से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होगी। गोर ने भरोसा जताया कि दोनों देशों के बीच कई अहम समझौते अंतिम चरण में हैं। इस बयान को भारत-अमेरिका संबंधों के लिए बड़ा संकेत माना जा रहा है।
रूसी तेल खरीद पर अमेरिकी दबाव
गोर ने रूस से भारत की कच्चे तेल की खरीद पर आपत्ति जताई। उनका कहना था कि राष्ट्रपति ट्रंप चाहते हैं कि भारत इस खरीद को तुरंत बंद करे। उन्होंने इसे दोनों देशों के बीच सहयोग के लिए आवश्यक कदम बताया। साथ ही उन्होंने माना कि भारत ने ब्रिक्स समूह में कई मौकों पर अमेरिका का पक्ष लिया है।
उन्होंने कहा कि ब्रिक्स के कई देश डॉलर से दूरी बनाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भारत इसमें अस्थायी सहयोगी रहा है। भारत ने कई बार अमेरिकी पक्ष का समर्थन किया है, जो भविष्य में साझेदारी को और गहरा कर सकता है। गोर ने यह भी कहा कि भारत-अमेरिका संबंध चीन की तुलना में कहीं बेहतर हैं।
क्या डोनाल्ड ट्रंप इस साल भारत आएंगे?
नामित अमेरिकी राजदूत सर्जियो गोर ने संकेत दिया है कि राष्ट्रपति ट्रंप भारत की यात्रा कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि क्वाड बैठक के लिए पहले से ही चर्चा चल रही है और इस पर सहमति बनी है।
भारत पर रूसी तेल बंद करने का दबाव क्यों है?
सर्जियो गोर ने साफ कहा कि अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से तेल खरीद बंद करे। उनका तर्क है कि यह कदम दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी और ऊर्जा सुरक्षा के लिहाज से जरूरी है।
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