Breaking News: Taliban: तालिबान विदेश मंत्री का भारत दौरा

By Dhanarekha | Updated: October 4, 2025 • 2:16 PM

दोस्ती का संदेश, अभूतपूर्व राजनयिक कदम

काबुल/नई दिल्ली: 15 अगस्त 2021 को तालिबान(Taliban) के काबुल(Kabul) पर कब्ज़े के बाद, भारत ने अपना दूतावास बंद कर दिया था, और माना जा रहा था कि दिल्ली के लिए अफगानिस्तान के दरवाज़े बंद हो गए हैं। लेकिन, लगभग चार साल बाद, तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी का 9 अक्टूबर को दिल्ली दौरा करना एक अप्रत्याशित और असाधारण कदम है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) से मंज़ूरी मिलने के बाद हो रही यह यात्रा, तालिबान के शीर्ष नेतृत्व के किसी अधिकारी का भारत का पहला आधिकारिक दौरा है।

इससे पहले, भारतीय और तालिबान(Taliban) अधिकारियों के बीच बातचीत केवल दुबई और काबुल तक ही सीमित थी। मुत्ताकी का यह दौरा महज़ प्रतीकात्मक नहीं है, बल्कि यह अफगानिस्तान और भारत के बीच मज़बूत होते संबंधों का स्पष्ट संकेत है। इस वर्ष की शुरुआत में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मुत्ताकी से टेलीफोन पर बात की थी, और जून में, भारत ने हैदराबाद स्थित अफगान वाणिज्य दूतावास का नियंत्रण तालिबान द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि को सौंप दिया था

भारत पर तालिबान का बढ़ता भरोसा

तालिबान(Taliban) भारत पर भरोसा इसलिए कर रहा है क्योंकि वह पाकिस्तान की हरकतों से परेशान है और अफगानों के दिल में भारत के लिए प्यार को महसूस करता है। अफगानिस्तान में विकास की चाहत रखने वाला तालिबान, चाहता है कि भारत अपने पुराने विकास परियोजनाओं (संसद भवन, सड़कें, बांध, स्कूल) को फिर से शुरू करे। भारत ने अफगानिस्तान में आने वाली हर आपदा के समय तत्काल राहत सहायता भेजी है (जैसे हालिया भूकंप में)।

नई दिल्ली ने अब तक 50,000 टन गेहूँ और दवाइयों सहित अन्य राहत सामग्री अफगान जनता तक पहुंचाई है। तालिबान(Taliban) ने भारत को अपना सहयोगी भी कहा है और पहलगाम आतंकी हमले की न केवल आलोचना की, बल्कि भारत के ‘जवाब देने के अधिकार’ का भी समर्थन किया था। भारत की तरफ से चाबहार पोर्ट के माध्यम से अफगानिस्तान को समुद्री मार्ग उपलब्ध कराना भी एक महत्वपूर्ण रणनीतिक कदम है, जो पाकिस्तान के बंदरगाह कनेक्शन को दरकिनार करता है। भारत ने औपचारिक मान्यता दिए बिना भी तालिबान के साथ संवाद जारी रखकर एक संतुलन बनाए रखा है।

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पाकिस्तान से रिश्ते में खटास और भारत की ओर झुकाव

तालिबान(Taliban) का भारत की ओर झुकाव, पाकिस्तान के साथ उसके बिगड़ते रिश्तों की पृष्ठभूमि में और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। दशकों तक पाकिस्तान ने तालिबान को अपना प्रॉक्सी (छद्म) माना, लेकिन धीरे-धीरे अफगानिस्तान को अपना ‘पाँचवाँ राज्य’ समझने लगा, और चाहता था कि तालिबान की विदेश नीति इस्लामाबाद से निर्देशित हो, जिसे तालिबान ने अस्वीकार कर दिया। पाकिस्तान ने दिसंबर 2024 में अफगानिस्तान में भीषण हवाई हमले किए और लाखों अफगान शरणार्थियों को अपमानित कर देश से बाहर निकाल दिया, जिसे तालिबान ने ‘विश्वासघात’ माना। इसके अलावा, डूरंड लाइन (अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा) पर बाड़ लगाने को लेकर भी दोनों के बीच विवाद है।

पाकिस्तान की नीतियों, अफगान शरणार्थियों के प्रति दुर्व्यवहार, और सीमा विवाद ने तालिबान का पाकिस्तान पर से विश्वास खत्म कर दिया है, जबकि भारत की दीर्घकालिक मदद, व्यापारिक विकल्प, और सम्मानजनक संवाद तालिबान को पाकिस्तान के प्रभाव से बाहर निकलने में मदद कर रहे हैं। मुत्ताकी की दिल्ली यात्रा इस भू-राजनीतिक बदलाव का प्रतीक है, जो दिखाता है कि अफगानिस्तान अब पाकिस्तान की छाया से बाहर निकलकर भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है।

तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी का भारत दौरा अफगानिस्तान की विदेश नीति में किस महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत देता है?

यह दौरा इस बात का संकेत देता है कि तालिबान अब पाकिस्तान के प्रभाव से मुक्त होकर भारत के साथ अपने संबंध मज़बूत करना चाहता है। यह बदलाव पाकिस्तान की विश्वासघाती नीतियों, हवाई हमलों और शरणार्थियों के निष्कासन के कारण हुए हैं, जबकि भारत की दीर्घकालिक मानवीय सहायता और विकास कार्यों ने तालिबान का विश्वास जीता है, जिससे वह दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में एक स्वतंत्र और संतुलित भूमिका निभाने की ओर अग्रसर है।

तालिबान और पाकिस्तान के बीच संबंध ख़राब होने के प्रमुख कारण क्या हैं?

तालिबान और पाकिस्तान के बीच संबंध ख़राब होने के कई प्रमुख कारण हैं:
पाकिस्तान का नियंत्रण की कोशिश: पाकिस्तान द्वारा तालिबान को अपना ‘पाँचवाँ राज्य’ मानना और उसकी विदेश नीति को इस्लामाबाद से तय करने की कोशिश, जिसे तालिबान ने अस्वीकार कर दिया।
हवाई हमला और निष्कासन: दिसंबर 2024 में पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान में किए गए भीषण हवाई हमले और लाखों अफगान शरणार्थियों को अपमानित कर देश से बाहर निकालना।
डूरंड लाइन विवाद: पाकिस्तान द्वारा डूरंड लाइन पर बाड़ लगाने को लेकर सीमा विवाद, जिसे तालिबान ने चुनौती दी है।
ये घटनाएँ तालिबान के विश्वास को ख़त्म कर चुकी हैं।

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