Jagannath Rath Yatra क्यों खास है रथ की रस्सी को छूने की परंपरा
Jagannath Rath Yatra भारत के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है। हर साल लाखों श्रद्धालु ओडिशा के पुरी नगर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की रथ यात्रा में शामिल होते हैं। इस उत्सव का एक विशेष पहलू है — रथ की रस्सी को छूना। हर भक्त इसे छूने के लिए आतुर रहता है। आखिर ऐसा क्या है इस रस्सी में?
Jagannath Rath Yatra में रस्सी का धार्मिक महत्व
Rath Yatra में जो विशाल रथ खींचे जाते हैं, उन्हें ‘सरथा दारू’ और रस्सी को ‘रामबांध’ कहा जाता है।
- यह रस्सी भगवान से सीधा जुड़ने का माध्यम मानी जाती है।
- मान्यता है कि इसे छूने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- भक्त इसे छूकर जीवन के कष्टों से मुक्ति की कामना करते हैं।

रस्सी खींचने की परंपरा
1. हर भक्त चाहता है रस्सी को छूना
- लाखों लोग इस रस्सी को खींचते हैं
- इसे छूना भाग्यशाली क्षण माना जाता है
- कई श्रद्धालु तो इसे घर ले जाने के लिए टुकड़ों में काटकर संग्रह भी करते हैं
2. राजा से लेकर आम जन तक
- पुरी के गजपति राजा स्वयं इस रस्म की शुरुआत करते हैं
- यह दिखाता है कि ईश्वर के सामने सभी समान हैं
- रस्सी खींचने में कोई जाति, वर्ग, धर्म का भेद नहीं होता
Jagannath Rath Yatra और मोक्ष का संबंध
- स्कंद पुराण और ब्रह्म पुराण में लिखा गया है कि इस यात्रा में भाग लेने से सात जन्मों के पाप कटते हैं
- रस्सी खींचना आत्मा को ईश्वर से जोड़ने की क्रिया मानी जाती है
- यह कर्म, भक्ति और आत्मसमर्पण का प्रतीक है

क्या कहती है आधुनिक मान्यता?
- श्रद्धालुओं के अनुसार, रस्सी को छूते ही एक ऊर्जा का अनुभव होता है
- यह आस्था किसी चमत्कार से कम नहीं
- वैज्ञानिक भी मानते हैं कि सामूहिक भक्ति और भावना से मानसिक ऊर्जा बढ़ती है
Jagannath Rath Yatra की रस्सी मात्र एक डोरी नहीं
Jagannath Rath Yatra की रस्सी भक्ति, आस्था और समर्पण का प्रतीक है। यह रस्सी सिर्फ रथ को नहीं खींचती, बल्कि भक्तों के मन को भगवान की ओर खींचती है। इसे छूना एक धार्मिक अनुभव ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का प्रतीक भी बन चुका है।