National : रिटायर हुए जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा- सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद स्वीकार नहीं करूंगा

By Anuj Kumar | Updated: May 14, 2025 • 9:29 AM

रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर मिले करोड़ों के कैश और कथित भ्रष्टाचार के आरोपों से कैसे निपटा गया, इस पर उन्होंने कहा,न्यायिक सोच निर्णायक और निर्णयात्मक होनी चाहिए। हम प्लस और माइनस देखते हैं और फिर तर्कसंगत तरीके से मुद्दे पर निर्णय लेते हैं। जब हम ऐसा करते हैं, तब हम निर्णय लेते हैं।

नई दिल्ली। देश के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) जस्टिस संजीव खन्ना मंगलवार को रिटायर हो रहे हैं। जज के रूप में मंगलवार को उनका अंतिम कार्यदिवस रहा है। इस मौके पर उन्होंने साफ किया कि वे रिटायर होने के बाद वह कोई भी आधिकारिक पद नहीं लूंगा। मंगलवार को जब वह सुप्रीम कोर्ट में मीडियाकर्मियों से मिल रहे थे, तब उन्होंने कहा, मैं सेवानिवृत्ति के बाद कोई पद स्वीकार नहीं करूंगा.. लेकिन शायद कानून के क्षेत्र में कुछ करूंगा। जस्टिस खन्ना के बयान से स्पष्ट हो गया है कि वे किसी आयोग का अध्यक्ष पद या कोई अन्य संवैधानिक पद स्वीकार नहीं करने वाले हैं, लेकिन कानून के क्षेत्र में वह काम करते रहना चाहते है। हालांकि, इस क्षेत्र में उनकी अगली भूमिका क्या होगी और कैसे होगी, इस पर उन्होंने कुछ स्पष्ट नहीं बताया। रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर मिले करोड़ों के कैश और कथित भ्रष्टाचार के आरोपों से कैसे निपटा गया, इस पर उन्होंने कहा,न्यायिक सोच निर्णायक और निर्णयात्मक होनी चाहिए। हम प्लस और माइनस देखते हैं और फिर तर्कसंगत तरीके से मुद्दे पर निर्णय लेते हैं। जब हम ऐसा करते हैं, तब हम निर्णय लेते हैं। फिर भविष्य आपको बताता है कि आपने जो किया वह सही था या नहीं। 14 मई, 1960 को जन्मे जस्टिस खन्ना एक समृद्ध और कानूनी विरासत वाले परिवार से आते हैं। उनके पिता देव राज खन्ना दिल्ली हाई कोर्ट के जज रहे हैं, जबकि उनकी मां सरोज खन्ना लेडी श्री राम कॉलेज में लेक्चरर थीं। वे सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एचआर खन्ना के भतीजे हैं, जिन्होंने केशवानंद भारती (1973) में मूल संरचना सिद्धांत का प्रतिपादन किया था और आपातकाल के दौरान एडीएम जबलपुर बंदी प्रत्यक्षीकरण मामले (1976) में एकमात्र असहमति व्यक्त की थी।

खन्ना को जनवरी 1977 में भारी कीमत चुकानी पड़ी थी

इस न्यायिक स्वतंत्रता के बदले जस्टिस एचआर खन्ना को जनवरी 1977 में भारी कीमत चुकानी पड़ी थी, उन्हें तब सीजेआई नहीं बनने दिया गया था। सीजेआई खन्ना के दादा, सरव दयाल, एक प्रमुख वकील थे, जिन्होंने 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच करने वाली भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समिति में काम किया था। जस्टिस खन्ना के पास जज और वकील के तौर पर तीन दशकों से अधिक का लंबा अनुभव है। वह दिल्ली हाई कोर्ट में भी अह भूमिकाएँ निभा चुके हैं और आयकर विभाग के वरिष्ठ स्थायी वकील के रूप में भी काम कर चुके हैं।

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