कर्ण का स्वर्ग में जीवन: महाभारत के महान वीर कर्ण को दानवीर कहा जाता है। अपने संपूर्ण जीवन में कर्ण ने दान और मानवतावाद के कार्य किए। महाभारत संग्राम में निधन के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कर्ण का अंतिम संस्कार किया था।
लेकिन विस्मय की बात यह थी कि मरने के बाद भी कर्ण को एक दिन के लिए धरती पर लौटना पड़ा। इसके पीछे एक गहरा गुप्त था।
कर्ण का स्वर्ग में अभिनंदन और मुश्किल
कर्ण के महान दान और पुण्य कार्यों के कारण यमराज उसे स्वर्ग लोक ले गए। वहां उसका भव्य आदर-सत्कार किया गया और उसे विलासिता से संपूर्ण स्थान दिया गया। स्वर्ग में चारों ओर सोने का वैभव देखकर कर्ण को हैरानी हुआ।

परंतु उसे खाने के लिए अन्न नहीं दिया गया। जब कर्ण ने इसका वजह पूछा तो बताया गया कि उसने जीवन भर सोने और कीमती सामग्री का दान किया, लेकिन कभी भी अन्न या जल का दान नहीं किया। इसलिए स्वर्ग में उसे अन्न की प्राप्ति नहीं हो रही थी।
अन्न और जल दान का महत्व
कर्ण को अपनी इस गलती का अनुभाव हुआ। उसने निवेदन किया कि उसे अपनी भूल सुधारने का मौका दिया जाए। यमराज ने उसे एक दिन के लिए धरती पर लौटने की मंजूरी दी। पृथ्वी पर आकर कर्ण ने सही तरीके से अपने पितरों के लिए तर्पण और अन्न-जल का दान किया। इसके बाद वह पुनः स्वर्ग चला गया, जहां उसे अब अन्न भी मिलने लगा।

यह कथा हमें यह सिखाती है कि जीवन में अन्न और जल का दान अधिक आवश्यक है। यह न केवल पितरों की तृप्ति के लिए आवश्यक है, बल्कि देहांत के बाद स्वर्ग में भी सुखद जीवन सुनिश्चित करता है। कर्ण की यह विस्मयकारी कहानी आज भी श्राद्ध पक्ष और तर्पण के श्रेष्ठता को रेखांकित करती है।