कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने कहा है कि मंदिर के पास इस्लामिक पर्चे बांटना तब तक अपराध नहीं है, जब तक धर्मांतरण का प्रयास न किया गया हो। हाईकोर्ट ने राज्य के धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत कथित तौर पर मंदिर के पास पर्चे बांटने व इस्लाम का प्रचार करने के आरोप में तीन व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया।
हाई कोर्ट ने क्या कहा ?
जस्टिस वेंकटेश नाइक टी ने 17 जुलाई को आदेश में कहा कि यह शिकायत अपने आप में त्रुटिपूर्ण थी। धर्मांतरण विरोधी कानून की धारा 4 के तहत धर्मांतरण कर चुके व्यक्ति या उनके निकट संबंधी ही शिकायत दर्ज कराने के लिए अधिकृत हैं। इस मामले में शिकायतकर्ता एक असंबंधित तृतीय पक्ष था, जिससे प्राथमिकी कानूनी रूप से अमान्य है।
शिकायत अपने आप में त्रुटिपूर्ण
स्टिस वेंकटेश नाइक टी ने 17 जुलाई को आदेश में कहा कि यह शिकायत अपने आप में त्रुटिपूर्ण थी। धर्मांतरण विरोधी कानून की धारा 4 के तहत धर्मांतरण कर चुके व्यक्ति या उनके निकट संबंधी ही शिकायत दर्ज कराने के लिए अधिकृत हैं। इस मामले में शिकायतकर्ता एक असंबंधित तृतीय पक्ष था, जिससे प्राथमिकी कानूनी रूप से अमान्य है।
यह मामला मई में जामखंडी ग्रामीण थाने में दर्ज प्राथमिकी से जुड़ा है, जिसमें शिकायतकर्ता ने कहा कि मुस्तफा मुर्तुजासब मोमिन, अलीसाब शब्बीर व सुलेमान रियाज को मंदिर के पास पर्चे बांटते देखा गया। तीनों पर हिंदू धर्म के बारे में अपमानजनक टिप्पणी व विरोध करने वालों को धमकाने का भी आरोप लगा। उन पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) व कर्नाटक धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत मामला दर्ज किया गया।
आरोपियों ने किसी का धर्मांतरण नहीं कराया
कोर्ट ने एफआईआर रद्द करते हुए कहा कि अगर आरोपों को पूरी तरह स्वीकार भी कर लिया जाए, तो भी वे अधिनियम की धारा 3 के तहत उचित नहीं ठहरते। ऐसा कोई सबूत नहीं था, जिससे पता चले कि किसी का वास्तव में धर्मांतरण हुआ या आरोपी ने इसका प्रयास किया।
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