कर्नाटक हाईकोर्ट ने ऑनलाइन सट्टेबाजी केस में यूजर डेटा साझा करने से इनकार पर फोनपे की याचिका खारिज की। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा प्राइवेसी जरूरी है,
कर्नाटक हाईकोर्ट ने डिजिटल पेमेंट प्लेटफॉर्म फोनपे की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें कंपनी ने पुलिस द्वारा मांगी गई यूजर जानकारी देने से इनकार किया था। यह मामला एक ऑनलाइन स्पोर्ट्स सट्टेबाजी से जुड़ा है। मामले में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने कहा कि डिजिटल युग में अपराध के तरीके बदल गए हैं और साइबर क्राइम के लिए तेज और सटीक जांच जरूरी है। उन्होंने कहा कि यूजर्स की प्राइवेसी जरूरी है, लेकिन यह कानूनी जांच से बचने का हथियार नहीं बन सकती।
क्या है पूरा मामला?
- बता दें कि 2022 में एक व्यक्ति ने शिकायत की थी कि उसने भारत बनाम साउथ अफ्रीका मैच के दौरान एक सट्टेबाज़ी वेबसाइट पर फोनपे से 6000 जमा किए थे।
- बाद में वेबसाइट बंद हो गई और पैसे नहीं निकाले जा सके।
- इसे धोखाधड़ी बताते हुए उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई, जिसके बाद पुलिस ने फोनपे को दिसंबर 2022 में धारा 91 सीआरपीसी के तहत नोटिस भेजकर जानकारी मांगी थी।
पुलिस ने कौन-कौन सी जानकारी मांगी थी..
- फनपे को भेजे गए नोटिस में पुलिस ने जानकारी के तौर पर पूछा था कि किस यूजर ने पैसे जमा किए? क्या फोनपे ने यूजर ऑनबोर्डिंग पर जांच की थी? क्या सट्टेबाजी जैसी संदिग्ध गतिविधियों का पता चला था? और किन-किन यूजर्स का इससे संबंध हो सकता है? जैसी जानकारी शामिल थी।
कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला
- मामले में हाईकोर्ट ने जांच की पारदर्शिता और जवाबदेही के साथ यूजर की गोपनीयता को संतुलित करना जरूरी है।
- इसलिए फोनपे की याचिका खारिज कर दी गई।
- इस मामले में फोनपे की ओर से अधिवक्ता नितिन रमेश और राज्य की ओर से अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता मोहम्मद जाफर शाह ने पैरवी की।
फोनपे का तर्क पर कोर्ट की टिप्पणी
पुलिस की मांग पर फोनपे ने कोर्ट में कहा कि पेमेंट एंड सेटलमेंट एक्ट 2007 और बैंकर्स बूकस एविडेंस एक्ट 1891 के तहत वो यूजर डेटा गोपनीय रखने के लिए बाध्य है और बिना कोर्ट के आदेश के डेटा साझा नहीं कर सकता। इसपर कोर्ट ने कहा कि इन कानूनों के तहत जांच एजेंसियों को सूचना देना कानूनी रूप से वैध है। साथ ही IT नियम 2011 का हवाला देते हुए कहा कि जांच एजेंसी की वैध मांग पर 72 घंटे में डेटा देना जरूरी है।
इसके साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि जब सार्वजनिक हित और जांच की जरूरत सामने हो, तब डेटा की सुरक्षा का दायित्व पीछे हटना चाहिए। साथ ही मामले में न्यायालय ने माना कि पुलिस की मांग ठोस और सीमित थी, कोई अनावश्यक या व्यापक जानकारी नहीं मांगी गई थी।
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