समाजवादी पार्टी के सांसद ज़िया-उर-रहमान बर्क ने वक्फ संशोधन अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर संतोष जताया है, भले ही कोर्ट ने अभी सभी मांगों पर फैसला नहीं दिया है।उन्होंने कहा कि वक्फ संशोधन अधिनियम पर भले ही अभी फैसला ना आया है लेकन उन्हे उम्मीद है ति फैसला उनके पक्ष में आएगा।
बर्क ने क्या कहा:
“अभी याचिका की सारी बातें नहीं सुनी गईं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश से हम फिलहाल संतुष्ट हैं। हम आगे की सुनवाई में बाकी मुद्दों पर भी राहत पाने की कोशिश करेंगे। हमने संसद में अपनी बात कही, लेकिन जब वहां से कोई जवाब नहीं मिला, तब कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।”
बर्क ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि संशोधन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं—खासतौर पर ‘यूज़र द्वारा वक्फ’ (Waqf by user) को हटाने और वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति को लेकर।
चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अगुआई वाली तीन जजों की बेंच ने याचिकाओं पर सुनवाई की, जिनमें बर्क की याचिका भी शामिल है। याचिकाओं में कहा गया है कि वक्फ संशोधन अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करता है।
सुप्रीम कोर्ट ने हमारी कई चिंताओं को गंभीरता से लिया है
उच्चतम न्यायलय ने हमारी कई चिंताओं को गंभीरता से लिया है—जैसे वक्फ बोर्ड और काउंसिल में नियुक्तियों पर रोक और दूसरे धार्मिक संस्थानों में मुसलमानों की भागीदारी पर सवाल। ये सिर्फ हमारी नहीं, पूरे देश की नजर सुप्रीम कोर्ट पर होती है, क्योंकि जब अधिकारों का हनन होता है, तो वहीं से न्याय की उम्मीद रहती है।”
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार का जवाब
सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने आश्वासन दिया कि वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की मुख्य धाराओं को—जैसे वक्फ काउंसिल और बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति और वक्फ संपत्तियों को डि-नोटिफाई करने—को फिलहाल लागू नहीं किया जाएगा
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया
- अगली सुनवाई तक ‘वक्फ बाय यूज़र’ समेत कोई वक्फ संपत्ति डि-नोटिफाई नहीं होगी।
- वक्फ बोर्ड और काउंसिल में कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी।
- केंद्र को जवाब दाखिल करने के लिए एक हफ्ते का वक्त दिया गया है, और याचिकाकर्ता उसके बाद 5 दिन में अपना जवाब दे सकेंगे।
अगली सुनवाई
मामले की अगली सुनवाई 5 मई से शुरू होने वाले सप्ताह में होगी, जिसमें केवल अंतरिम आदेशों और दिशा-निर्देशों पर सुनवाई होगी।
सरकार की दलील:
सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट से कहा कि इस अधिनियम को रोकना जल्दबाज़ी होगा क्योंकि इसे लोगों की लाखों प्रतिक्रियाओं और सुझावों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। उन्होंने कहा, “यह एक विचारशील कानून है, इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।