समुद्र में समाने पर देश का दर्जा?
माले: जलवायु परिवर्तन ने छोटे द्वीपीय देशों के अस्तित्व पर गहरी चोट की है। तुवालु(Tuvalu), किरिबाती, मालदीव(Maldives) और मार्शल आइलैंड(Marshall Islands) जैसे राष्ट्र समुद्र के बढ़ते जलस्तर और तूफानों से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। इनके सामने न केवल भूमि के डूबने का खतरा है, बल्कि संस्कृति और विरासत मिटने की भी आशंका है। सबसे बड़ी चुनौती यह है कि जमीन खोने के बाद भी क्या इन्हें अंतरराष्ट्रीय कानून में देश का दर्जा हासिल रहेगा।
तुवालु की कोशिश और डिजिटल पहचान
तुवालु ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के साथ समझौता किया है, जिसमें उसके नागरिकों को सुरक्षित जीवन का भरोसा दिया गया है। इस कदम से यह स्पष्ट है कि द्वीप अपने भविष्य के कानूनी दर्जे को बनाए रखने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। साथ ही तुवालु ने अपनी सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन शिफ्ट कर डिजिटल राष्ट्र बनने की दिशा में कदम बढ़ाया है। यह दुनिया का पहला ऐसा प्रयोग होगा जहां भौतिक भूमि खत्म होने पर भी डिजिटल पहचान से देश का दर्जा कायम रखा जाएगा।
इसके विपरीत मालदीव(Maldives) ने इंजीनियरिंग समाधान खोजने की राह अपनाई है। वहां आर्टिफिशियल तरीके से द्वीपों की ऊंचाई बढ़ाने की योजना पर काम चल रहा है। यह पहल “राइजिंग नेशंस इनिशिएटिव” के तहत प्रशांत महासागर के देशों की संप्रभुता की रक्षा के लिए की जा रही है।
अंतरराष्ट्रीय कानून और कानूनी पेच
अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक किसी राज्य के लिए जनसंख्या, भू-भाग, स्वतंत्र सरकार और अंतरराष्ट्रीय संबंध जरूरी शर्तें हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन से प्रभावित द्वीपीय राष्ट्रों के लिए यह संभव नहीं रह जाएगा। जमीन डूबने पर भू-भाग और सरकार दोनों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
फिर भी कानून में लचीलापन मौजूद है। उदाहरण के लिए सोमालिया और यमन में प्रभावी सरकार नहीं होने के बावजूद उनका देश का दर्जा बना हुआ है। इसी आधार पर कई विशेषज्ञ मानते हैं कि डूबते द्वीप भी अपने राज्यत्व को बनाए रख सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की राय और भविष्य
हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने माना कि जलवायु परिवर्तन छोटे द्वीपों(Maldives) को अस्तित्व संकट में डाल सकता है। कोर्ट ने कहा कि किसी एक तत्व की अनुपस्थिति राज्यत्व खत्म करने का आधार नहीं हो सकती। इसका मतलब है कि कानूनी दृष्टि से इन देशों का दर्जा अभी सुरक्षित रह सकता है।
हालांकि यह स्थिति अस्थायी है। भविष्य में इस पर ठोस कानूनी फैसला आने की उम्मीद है। फिलहाल द्वीपीय देशों का भविष्य अनिश्चित बना हुआ है और दुनिया की नजरें इस पर टिकी हैं।
छोटे द्वीपीय देशों का अस्तित्व सबसे ज्यादा खतरे में क्यों है?
इन देशों की जमीन समुद्र तल से बेहद कम ऊंचाई पर स्थित है। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते जलस्तर और तूफान इनके डूबने और संसाधनों के नष्ट होने की संभावना को और तेज कर रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय कानून इन देशों को किस हद तक सुरक्षा देता है?
कानून कहता है कि एक बार राज्य बनने के बाद उसका दर्जा तुरंत खत्म नहीं किया जा सकता। इसलिए जमीन खोने की स्थिति में भी इन देशों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलने की संभावना बनी रहती है।
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