हिमाचल प्रदेश (Himachal pradesh) का मनाली, जो अपनी प्राकृतिक (Natural) सुंदरता और शांत वादियों के लिए विश्व प्रसिद्ध है, हाल ही में प्रकृति के रौद्र रूप का गवाह बना। यहां एक अनोखा और विनाशकारी घटनाक्रम सामने आया, जब जमीन के नीचे से अचानक गर्म पानी का स्रोत फूट पड़ा, जिसने एक करोड़ों रुपये की लागत से बने आलीशान होटल को पूरी तरह बर्बाद कर दिया। यह घटना न केवल पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए हैरान करने वाली थी, बल्कि यह प्रकृति की अप्रत्याशित शक्ति का भी सबूत है।
मनाली से बस 10 किलोमीटर दूर
यह घटना मनाली से लगभग 10 किलोमीटर दूर बांग कस्बे में घटी, जहां व्यास नदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध होटल, जिसे क्षेत्र का गौरव माना जाता था, प्रकृति की मार का शिकार हो गया। स्थानीय लोगों के अनुसार, यह होटल अपनी भव्यता और आधुनिक सुविधाओं के लिए जाना जाता था। लेकिन अचानक जमीन के नीचे से गर्म पानी का स्रोत फूटने और भारी बारिश के कारण व्यास नदी में आए उफान ने इस होटल को पूरी तरह तबाह कर दिया। होटल की इमारत का अधिकांश हिस्सा पानी की तेज धारा में बह गया, और केवल मुख्य द्वार की एक दीवार और मेन्यू कार्ड ही बचे।
घटना प्रकृति के साथ मानवीय लापरवाही का परिणाम
स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटना प्रकृति के साथ मानवीय लापरवाही का परिणाम हो सकती है। कई लोगों ने बताया कि नदी के इतने करीब होटल का निर्माण करना जोखिम भरा था। विशेषज्ञों का कहना है कि मनाली जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में भूगर्भीय गतिविधियां और गर्म पानी के स्रोत सामान्य हैं, लेकिन बिना उचित भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण के निर्माण कार्य पर्यावरण और संपत्ति के लिए खतरा बन सकते हैं।
होटल मालिक को बड़ा आर्थिक नुकसान
इस घटना ने न केवल होटल मालिकों को आर्थिक नुकसान पहुंचाया, बल्कि क्षेत्र की पर्यटन अर्थव्यवस्था पर भी सवाल खड़े किए हैं। मनाली में भारी बारिश और बाढ़ ने हाल के दिनों में कई अन्य होटलों, दुकानों और सड़कों को भी नुकसान पहुंचाया है। कुल्लू-मनाली नेशनल हाईवे और अटल टनल के पास सड़कों पर पानी भरने से पर्यटकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।
यह घटना एक चेतावनी है कि प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखना कितना जरूरी है। स्थानीय प्रशासन और होटल एसोसिएशन अब इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सख्त नियम और भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण की मांग कर रहे हैं। मनाली की इस तबाही ने हमें यह सिखाया है कि प्रकृति की शक्ति के सामने मानव निर्मित संरचनाएं कितनी नाजुक हो सकती हैं।
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