आज की बड़ी खबर उत्तर प्रदेश की सियासत से, जहां समाजवादी पार्टी (सपा) ने अपनी विधायक पूजा पाल (Pooja Pal) को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। यह कार्रवाई तब हुई, जब पूजा पाल ने विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की “जीरो टॉलरेंस” नीति की जमकर तारीफ की। इस तारीफ ने सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को तुरंत एक्शन लेने पर मजबूर कर दिया, और पूजा पाल को “पार्टी विरोधी गतिविधियों” और “अनुशासनहीनता” के आरोप में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
सपा को रास नहीं आयी तारीफ
कौशांबी की चायल सीट से सपा विधायक पूजा पाल ने 14 अगस्त 2025 को विधानसभा में “विजन डॉक्यूमेंट 2047” पर चर्चा के दौरान CM योगी की नीतियों की सराहना की। उन्होंने कहा, “सबको पता है मेरे पति राजू पाल की हत्या किसने की थी। जब कोई मेरी बात नहीं सुन रहा था, तब CM योगी ने मुझे इंसाफ दिलाया। उनकी जीरो टॉलरेंस नीति ने अतीक अहमद जैसे अपराधियों का खात्मा किया और प्रयागराज की कई महिलाओं को न्याय मिला।” पूजा ने योगी को “पूरे प्रदेश की भरोसेमंद आवाज” तक कह डाला। उनके पति, बसपा विधायक राजू पाल की 2005 में प्रयागराज में गैंगस्टर अतीक अहमद और उनके सहयोगियों द्वारा हत्या कर दी गई थी।
विधायक राजू पाल की पत्नी हैं
2023 में अतीक और उनके भाई अशरफ की पुलिस कस्टडी में हत्या और CBI द्वारा 2024 में सात लोगों को सजा सुनाए जाने के बाद पूजा ने इसे अपने लिए इंसाफ माना। लेकिन यह तारीफ सपा को रास नहीं आई। अखिलेश यादव ने तुरंत कार्रवाई करते हुए पूजा पाल को पार्टी से निष्कासित कर दिया। सपा की ओर से जारी पत्र में कहा गया, “आपकी पार्टी विरोधी गतिविधियां और बार-बार चेतावनी के बावजूद अनुशासनहीनता ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया। आप तत्काल प्रभाव से सपा से निष्कासित हैं और किसी भी पार्टी कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकतीं।” इस फैसले ने सियासी हलकों में हंगामा मचा दिया।
बीजेपी ने मौके का फायदा उठाते हुए सपा पर “दलित विरोधी” होने का आरोप लगाया। बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने कहा, “पूजा पाल ने अपराध के खिलाफ लड़ाई की तारीफ की, लेकिन सपा को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। यह उनकी माफिया समर्थक और दलित विरोधी मानसिकता दर्शाता है।”
कांग्रेस और बसपा जैसे विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे पर सपा को घेरा, जबकि सपा नेताओं ने इसे आंतरिक अनुशासन का मामला बताया। सियासी विश्लेषकों का मानना है कि पूजा पाल का निष्कासन सपा के लिए नुकसानदायक हो सकता है, क्योंकि यह दलित और महिला मतदाताओं में गलत संदेश दे सकता है।
दूसरी ओर, बीजेपी इसे योगी सरकार की अपराध विरोधी नीति की जीत के रूप में पेश कर रही है। क्या यह निष्कासन सपा की एकता को कमजोर करेगा, या अखिलेश का यह कदम उनकी पार्टी में अनुशासन का संदेश देगा? यह सियासी जंग अब और रोचक होने वाली है। अधिक अपडेट के लिए बने रहें।