नई दिल्ली। भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के बीच रिश्तों को लेकर कई आशंकाएं जताई गई हैं कि इन दोनों के बीच सबकुछ ठीक नहीं है। तल्खी भरे रिश्तों की चर्चा होती रही है, जिसका सबसे बड़ा कारण भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव बार-बार टलना माना जा रहा है। हालांकि अब परिस्थिति बदलती नजर आ रही है।
मोदी और शाह के बयानों से बदलते संकेत
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 15 अगस्त को लाल किले से अपने संबोधन के दौरान आरएसएस की प्रशंसा की थी। 11 वर्षों में पहली बार लाल किले से संघ का जिक्र हुआ। पीएम मोदी ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के जन्मदिन पर अखबारों में लेख लिखकर भी उनकी सराहना की।
हाल ही में गृहमंत्री अमित शाह ने भी कहा कि “आरएसएस से जुड़ा होना कोई माइनस पॉइंट नहीं है।” भाजपा के दोनों शीर्ष नेताओं के इन बयानों को रिश्तों में सहजता का संकेत माना जा रहा है।
लाल किले से संघ की प्रशंसा
मोदी ने कहा, “100 वर्षों की राष्ट्र सेवा आरएसएस का गौरवशाली अध्याय है। संघ विश्व का सबसे बड़ा एनजीओ है, जिसने सेवा, समर्पण और अनुशासन की मिसाल पेश की है।”
वहीं शाह ने संसद और कई सार्वजनिक मंचों से स्वयंसेवक होने पर गर्व व्यक्त किया और संघ की भूमिका को मजबूती दी।
दूरी की अटकलों को खत्म करने की कोशिश
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीजेपी (BJP) अब अपने वैचारिक परिवार से दूरी की अटकलों को खत्म करना चाहती है। एक वरिष्ठ बीजेपी नेता के अनुसार, “आरएसएस और भाजपा अलग नहीं हैं, दोनों का लक्ष्य एक ही है।”संघ नेताओं ने भी कहा कि परिवार में मतभेद स्वाभाविक हैं, लेकिन विचारधारा ही सभी को जोड़कर रखती है।
नड्डा के बयान से शुरू हुआ विवाद
इस तनाव की शुरुआत 2024 में हुई थी जब भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि “भाजपा को अब आरएसएस पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं है।” इस बयान से संघ में असहजता बढ़ी।
लोकसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत न मिलने के पीछे आरएसएस की अनिच्छा भी एक कारण बताया गया।
भागवत के संकेत और बाद की सियासत
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने उस समय कहा था कि “सच्चा सेवक अहंकार रहित होता है।” इसे भाजपा के लिए संदेश माना गया। हालांकि बाद में दोनों संगठनों ने रिश्तों को पटरी पर लाने की कोशिश की।
इसके बाद महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनावों में भाजपा की शानदार जीत को भी संघ की प्रबंधन नीति का परिणाम माना गया।
‘परिवार का मामला’ बताकर तनाव से इनकार
संघ प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने किसी भी तरह के तनाव से इनकार करते हुए कहा कि “यह परिवार का मामला है।”
भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की कितनी शाखाएं हैं?
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की शाखाओं की सटीक संख्या बताना मुश्किल है, क्योंकि यह संख्या समय के साथ बदलती रहती है और समय-समय पर लाखों में हो सकती है. 2004 में, भारत भर में 51,000 से अधिक शाखाएँ सक्रिय थीं, लेकिन यह एक स्थिर आँकड़ा नहीं है.
मोदी आरएसएस में कैसे शामिल हुए?
आठ वर्ष की आयु में ही उनका परिचय आरएसएस से हुआ और 1971 में वे गुजरात में संगठन के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। आरएसएस ने उन्हें 1985 में भाजपा में नियुक्त किया और वे पार्टी पदानुक्रम में आगे बढ़ते हुए 1998 में महासचिव बने।