84 घंटे बर्बाद: सत्र की कार्यक्षमता पर सवाल
Monsoon Session : इस मानसून सत्र में लोकसभा (Lok Sabha) की कार्यवाही का बड़ा हिस्सा शोरगुल, नारेबाजी और अव्यवस्था की भेंट चढ़ गया। लगभग 84 घंटे का समय सदन की कार्यवाही में बाधा के कारण बर्बाद हुआ। सरकार और विपक्ष के बीच कई मुद्दों पर तीखी नोकझोंक देखने को मिली। सदन में ज़रूरी विधेयकों और जनहित से जुड़े विषयों पर बहस के बजाय लगातार विरोध प्रदर्शन और वेल में आना प्रमुख दृश्य बने रहे।
लोकसभा का मानसून (Monsoon Session) सत्र गुरुवार को समाप्त हो गया। यह सत्र बार-बार हंगामे और जबरन स्थगन की वजह से चर्चा से ज्यादा शोरगुल में बीता। लोकसभा सचिवालय के अनुसार, कुल 21 बैठकों वाले इस एक माह लंबे सत्र में 84 घंटे से अधिक का समय बर्बाद हुआ। यह 18वीं लोकसभा के इतिहास में अब तक का सबसे अधिक समय है जो हंगामे के कारण व्यर्थ गया।
120 घंटे की योजना, केवल 37 घंटे हुए काम
मानसून सत्र की शुरुआत 21 जुलाई को हुई थी। इस पहले सभी दलों ने तय किया था कि कुल 120 घंटे चर्चा और कामकाज के लिए दिए जाएंगे। वहीं व्यापार सलाहकार समिति ने भी इस पर सहमति जताई थी। लेकिन, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बताया कि लगातार गतिरोध और योजनाबद्ध हंगामों के कारण, सिर्फ 37 घंटे 7 मिनट ही प्रभावी कामकाज हो पाया।
सरकार का कामकाज आगे बढ़ा, विपक्ष पीछे
इसके बावजूद, सरकार ने इस छोटे समय में 14 विधेयक पेश किए और 12 महत्वपूर्ण कानून पास कराए। इनमें ऑनलाइन गेमिंग को बढ़ावा और नियमन विधेयक, 2025 और खनिज और खनन (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2025 के साथ-साथ राष्ट्रीय खेल शासन विधेयक, 2025 प्रमुख हैं। वहीं संसदीय कार्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा कि यह सत्र सरकार और देश के लिए सफल और फलदायी रहा, लेकिन विपक्ष के लिए असफल और नुकसानदायक साबित हुआ।
विवादित विधेयक और विपक्ष का हंगामा
सबसे ज्यादा विवाद 20 अगस्त को हुआ जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने तीन अहम विधेयक पेश किए। इन विधेयकों में यह प्रावधान है कि यदि प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री 30 दिन तक गंभीर आपराधिक आरोपों में जेल में रहते हैं, तो उन्हें पद से हटाया जा सकता है। इस प्रस्ताव पर विपक्ष ने तीखा विरोध किया और सदन में तीखी नोकझोंक हुई। जहां सरकार के विधेयक आगे बढ़े, वहीं निजी सदस्यों के बिलों पर बिल्कुल भी चर्चा नहीं हुई। न तो कोई पेश किया गया, न ही किसी पर बहस हुई और न ही कोई पारित हुआ।
लोकसभा में कितने सत्र होते हैं?
भारतीय संसद में आमतौर पर एक वर्ष में तीन सत्र होते हैं: बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र.
लोकसभा का विशेष सत्र कौन बुला सकता है?
चूँकि मौजूदा प्रावधान संसदीय सत्रों की आवृत्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाते हैं, यह भारत के राष्ट्रपति को केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर, आवश्यकतानुसार, अनिश्चित काल के लिए संसद सत्र बुलाने का अधिकार देता है।
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