Latest News : ट्रेन हादसे में युवक की मौत, 1 महीने बाद प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार

By Surekha Bhosle | Updated: December 11, 2025 • 12:59 PM

ओडिशा के गंजाम जिले के दिगपहंडी ब्लॉक के बी. तुरुबुड़ी गांव में रहने वाले बलराम गौड़ा की मौत की खबर उनके परिवार को पूरे एक महीने बाद मिली। बलराम पिछले 15 महीनों से मुंबई में मजदूरी कर रहे थे। अचानक तबीयत बिगड़ने के बाद वह घर लौटने के लिए ट्रेन में बैठे, लेकिन रास्ते में क्या हुआ, यह किसी को भी पता नहीं चला।

स्विच ऑफ आने लगा फोन

बलराम के भाई कृष्णचंद्र गौड़ा ने बताया कि कुछ दिनों पहले उनके भाई बलराम (Balram) की तबीयत खराब हुई थी। इसी वजह से बलराम (LTT-Visakhapatnam) एलटीटी–विशाखापट्टनम ट्रेन में बैठकर घर लौट रहा था। लेकिन वह बीच रास्ते तंदूर स्टेशन पर उतर गया और यही बात परिवार को बिलकुल पता नहीं थी। उनका फोन लगातार स्विच ऑफ आने लगा। घरवाले सोचते रहे कि शायद वह किसी और जगह काम करने चला गया होगा। लेकिन कई दिनों तक कोई जानकारी न मिलने पर परिवार चिंतित हो गया और खोजबीन शुरू की

‘तंदूर स्टेशन’ पहुंच भाई ने की पहचान

कृष्णचंद्र बताते हैं कि वे पहले उस जगह गए जहां से उनका भाई ट्रेन में चढ़ा था। गांव के ही एक युवक ने बताया कि 8 नवंबर सुबह 7 बजे बलराम तनुकु स्टेशन पर उतरे थे। जब कृष्णचंद्र तनुकु स्टेशन पहुंचे, तो रेलवे पुलिस ने उन्हें कई अनजान मृतकों की तस्वीरें दिखाईं, लेकिन उनमें बलराम नहीं थे। इसके बाद गांव के किसी शख्स ने बताया कि तेलंगाना में एक ‘तंदूर स्टेशन’ भी है। यह सुनकर कृष्णचंद्र वहां पहुंचे और पुलिस से संपर्क किया। तंदूर स्टेशन पुलिस ने कुछ तस्वीरें दिखाईं, जिनमें कृष्णचंद्र ने अपने भाई बलराम की पहचान कर ली।

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बिना परिवार को बुलाए कर दिया अंतिम संस्कार

तंदूर रेलवे पुलिस ने उन्हें आगे की जानकारी के लिए मेन जीआरपी पिकाराबाद जंक्शन भेजा। वहां के एसएचओ ने उन्हें पोस्टमार्टम रिपोर्ट, पहचान से जुड़ी तस्वीरें और अंतिम संस्कार की जगह दिखाई। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का स्पष्ट कारण नहीं लिखा था और पुलिस ने भी परिवार को कोई ठोस वजह नहीं बताई। कृष्णचंद्र ने बताया कि उनके भाई का अंतिम संस्कार बिना परिवार को बुलाए ही कर दिया गया। पुलिस ने शव भी परिवार को देने से मना कर दिया।

सदमे में परिवार वाले

इस घटना को एक महीना बीत चुका है। 9 नवंबर से लेकर अब तक परिवार सदमे में है। शव न मिलने के कारण परिवार ने गांव में भूसे से बने शरीर का प्रतीकात्मक संस्कार किया। भाई कृष्णचंद्र ने बताया, “हमने भूसे से एक प्रतीकात्मक शरीर बनाकर उसका अंतिम संस्कार किया है। ऐसी घटना किसी के साथ नहीं होनी चाहिए। हम सरकार से उम्मीद करते हैं कि हमें कुछ मदद मिले।”

बलराम की अचानक मौत, परिवार को एक महीने तक अनजान रखा जाना, पोस्टमार्टम में भी कोई साफ कारण न मिलना, और शव न देने का निर्णय,इन सभी बातों ने परिवार को गहरी पीड़ा और सवालों से घेर दिया है। बी. तुरुबुड़ी गांव में इस घटना को लेकर शोक का माहौल है।

भारत का सबसे बड़ा ट्रेन हादसा कौन सा था?

भारत के रेल इतिहास की यह सबसे भयावह रेल दुर्घटना घटी थी 6 जून, 1981 को. उस मनहूस दिन बिहार के मानसी (धमारा पुल) और सहरसा के बीच 1000 से ज्यादा यात्रियों को ले जा रही 416 डाउन पैसेंजर ट्रेन पटरी से उतरकर बागमती नदी में गिर गयी थी.

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