23 अगस्त 2025 को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने करीबी सहयोगी सर्जियो गोर (Sergio Gore) को भारत (India)में अगला अमेरिकी राजदूत नियुक्त करने की घोषणा की। इसके साथ ही गोर को दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों के लिए विशेष दूत की जिम्मेदारी भी दी गई। यह नियुक्ति ऐसे समय में हुई है, जब भारत-अमेरिका संबंध टैरिफ युद्ध और भारत के रूस से तेल आयात को लेकर तनाव के दौर से गुजर रहे हैं।
सर्जियो गोर की नियुक्ति को कई विश्लेषक अमेरिका की एक नई रणनीति के रूप में देख रहे हैं, जिसका मकसद भारत और रूस के मजबूत संबंधों पर नजर रखना और दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रभाव बढ़ाना है। भारतीय नौकरशाह इस चाल को पूरी तरह समझ नहीं पा रहे हैं, और भारत के सामने अब सवाल है कि वह इस जटिल कूटनीतिक परिदृश्य से कैसे निपटेगा।
सर्जियो गोर: ट्रंप का भरोसेमंद सिपाही
39 वर्षीय सर्जियो गोर, जो व्हाइट हाउस के प्रेसिडेंशियल पर्सनल ऑफिस के निदेशक हैं, ट्रंप के 2024 के राष्ट्रपति अभियान में अहम भूमिका निभा चुके हैं। ट्रंप ने उन्हें अपने “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” एजेंडे को भारत में लागू करने के लिए चुना है।
गोर की नियुक्ति को ट्रंप की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसमें वह भारत के रूस के साथ बढ़ते व्यापारिक और रक्षा संबंधों पर दबाव बनाना चाहते हैं। गोर का सीमित कूटनीतिक अनुभव और उनकी विवादास्पद छवि (रूसी जासूस के आरोप और एलन मस्क के साथ टकराव) इस नियुक्ति को और रहस्यमय बनाती है।
टैरिफ युद्ध: भारत पर दबाव की रणनीति
जुलाई 2025 में ट्रंप ने भारत के रूस से तेल आयात और सैन्य उपकरण खरीद को लेकर 25% टैरिफ लगाया, जिसे बाद में बढ़ाकर 50% कर दिया गया। यह टैरिफ 27 अगस्त से लागू होगा। ट्रंप ने भारत को “मृत अर्थव्यवस्था” कहकर तंज कसा और रूस के साथ उसके व्यापार को यूक्रेन युद्ध को बढ़ावा देने वाला बताया।
भारत ने इस कदम को “अनुचित और अनुचित” करार देते हुए जवाबी कार्रवाई की बात कही। भारत का तर्क है कि रूस से सस्ता तेल आयात उसकी ऊर्जा सुरक्षा के लिए जरूरी है, और अमेरिका-यूरोप स्वयं रूस से व्यापार कर रहे हैं।
भारत 2024 में रूस से 88 मिलियन टन तेल आयात कर चुका है, जो उसकी कुल तेल आपूर्ति का 35% है। यह तेल भारत की रिफाइनरियों के लिए किफायती है, और इसके निर्यात से भारत यूरोप को $20.5 बिलियन के पेट्रोलियम उत्पाद बेच चुका है। ट्रंप का दावा है कि यह व्यापार रूस के युद्ध को फंड करता है, लेकिन भारत का कहना है कि उसने रूस से आयात तब शुरू किया , जब पश्चिमी देशों ने अपने तेल स्रोतों को यूरोप की ओर मोड़ दिया।
अमेरिका की चाल: भारत-रूस संबंधों पर नकेल
सर्जियो गोर की नियुक्ति और टैरिफ युद्ध को एक साथ देखें, तो यह साफ है कि अमेरिका भारत को रूस से दूर करने की रणनीति पर काम कर रहा है। ट्रंप की नीति के तीन मुख्य उद्देश्य नजर आते हैं:
1. यूक्रेन युद्ध को खत्म करना: ट्रंप ने दावा किया है कि वह यूक्रेन युद्ध को 24 घंटे में खत्म कर सकते हैं। भारत और चीन जैसे बड़े रूसी तेल खरीदारों पर दबाव डालकर वह रूस की आर्थिक ताकत को कमजोर करना चाहते हैं।
2. दक्षिण-पूर्व एशिया पर नजर: गोर को दक्षिण और मध्य एशिया का विशेष दूत बनाकर अमेरिका इस क्षेत्र में भारत, पाकिस्तान, और बांग्लादेश जैसे देशों की नीतियों पर नजर रखना चाहता है। भारत की रूस और BRICS के साथ बढ़ती साझेदारी को अमेरिका अपने हितों के खिलाफ देखता है।
3. चीन के साथ डील: ट्रंप ने चीन पर रूस से तेल खरीद के लिए कोई सख्त कार्रवाई नहीं की, जो भारत के 50% टैरिफ की तुलना में केवल 30% है। विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप चीन के साथ व्यापारिक और रणनीतिक डील चाहते हैं, जिसमें दुर्लभ खनिजों का व्यापार शामिल है।[]
भारतीय नौकरशाहों की चुनौती
भारतीय नौकरशाह इस जटिल रणनीति को समझने में उलझे हुए हैं। ट्रंप की अप्रत्याशित और ल ेन-देन आधारित नीतियों ने भारत की विदेश नीति को चुनौती दी है। भारत ने हमेशा रूस, अमेरिका, और चीन के बीच संतुलन बनाए रखने की नीति अपनाई है, लेकिन ट्रंप की सख्ती ने इस संतुलन को बिगाड़ दिया है।
– कूटनीतिक अनुभव की कमी: गोर का सीमित कूटनीतिक अनुभव भारत के साथ जटिल व्यापार और रक्षा वार्ताओं को प्रभावित कर सकता है। भारतीय नौकरशाहों को उनके साथ सतर्कता से निपटना होगा।
– टैरिफ का आर्थिक प्रभाव: 50% टैरिफ से भारत के $86 बिलियन के निर्यात (विशेषकर टेक्सटाइल, रत्न, और ऑटो पार्ट्स) पर भारी असर पड़ेगा। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशन (FIEO) ने इसे “गंभीर झटका” बताया है।
– रूस के साथ संबंध: भारत रूस से सस्ते तेल और रक्षा उपकरणों पर निर्भर है। रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव और भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 21 अगस्त को मॉस्को में मुलाकात कर व्यापार बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई। रूस ने भारत को अपने बाजार में निर्यात का न्योता भी दिया।[]
भारत की जवाबी रणनीति
भारत इस चुनौती से निपटने के लिए बहुआयामी रणनीति अपना सकता है:
1. जवाबी टैरिफ: भारत अमेरिकी आयात (जैसे क्रूड ऑयल, डायमंड, और विमान पार्ट्स) पर जवाबी टैरिफ लगा सकता है। हालांकि, यह भारत के $46 बिलियन के व्यापार अधिशेष को प्रभावित कर सकता है।[]
2. वैकल्पिक बाजार: रूस ने भारत को अपने बाजार में निर्यात का अवसर दिया है। भारत अन्य BRICS देशों और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ व्यापार बढ़ाकर नुकसान की भरपाई कर सकता है।[](
3. कूटनीतिक संवाद: भारत ने छठे दौर की व्यापार वार्ता के लिए अमेरिकी टीम को अगस्त के अंत में आमंत्रित किया है। विदेश सचिव विक्रम मिश्री ने अमेरिका के दोहरे मानदंडों की आलोचना की है, जो भारत की स्थिति को मजबूत करता है।
4. ऊर्जा विविधीकरण: भारत अमेरिका से क्रूड ऑयल आयात बढ़ा रहा है, जो 2025 के पहले छह महीनों में 51% बढ़ा है। यह रूस पर निर्भरता कम करने का प्रयास हो सकता है।
सर्जियो गोर की नियुक्ति और टैरिफ युद्ध अमेरिका की उस रणनीति का हिस्सा हैं, जिसका मकसद भारत को रूस से दूर करना और दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रभाव बढ़ाना है। ट्रंप की नीति भारत के लिए आर्थिक और कूटनीतिक चुनौतियां ला रही है, लेकिन भारत की मजबूत विदेश नीति और रूस के साथ गहरे संबंध इसे जवाब देने की ताकत देते हैं।
भारतीय नौकरशाहों को अब सतर्कता, संयम, और रणनीतिक चालों के साथ इस स्थिति से निपटना होगा। क्या भारत इस “टैरिफ तूफान” को अवसर में बदल पाएगा? यह समय और भारत की कूटनीति तय करेगी।
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