पटना । बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन (India Aliance) को सीट बंटवारे को लेकर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। राजद 150 सीटों पर चुनाव लड़ने का लक्ष्य रख रही है, जिससे महागठबंधन के पास शेष 93 सीटें ही बचती हैं। इस बीच वामपंथी दलों ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने और मुख्यमंत्री चेहरे की घोषणा को लेकर दबाव बढ़ा दिया है।
वामपंथी दलों की मांग: 35 सीटों की हिस्सेदारी
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) ने 24 सीटों और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (सीपीएम) ने 11 सीटों की मांग की है। दोनों दलों ने महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा तेजस्वी यादव घोषित करने की भी मांग की। सीपीआई और सीपीएम ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि सीट बंटवारे के फॉर्मूले में देरी से भ्रम पैदा हो सकता है और यह महागठबंधन की कमजोरियों को उजागर करता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि राजद और कांग्रेस छोटे सहयोगियों को अधिक सीटें देंगे।
पिछला प्रदर्शन और नई उम्मीदें
वामपंथी दलों ने 2020 के चुनावों में अपने प्रदर्शन का हवाला दिया। सीपीआई ने छह सीटों पर चुनाव लड़ा और दो जीत हासिल की, जबकि सीपीएम ने चार सीटों पर चुनाव लड़ा और दो जीत हासिल की। इस बार वे ज़्यादा सीटों की उम्मीद कर रहे हैं।
गठबंधन में शामिल अन्य दल और जटिलता
मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी (VIP), हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) और पशुपति कुमार पारस की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (आरएलजेपी) के शामिल होने से सीट बंटवारे की प्रक्रिया और जटिल हो गई है। सीपीआई के राज्य सचिव राम नरेश पांडेय ने कहा कि बड़ी पार्टियों को भाकपा और माकपा के पक्ष में सीटों का त्याग करना होगा। वहीं, माकपा के राज्य सचिव ललन चौधरी ने कहा कि देरी राज्य और महागठबंधन के लिए खतरनाक साबित होगी।
समन्वय समिति और आगे की रणनीति
दोनों नेताओं ने बताया कि सीट बंटवारे को अंतिम रूप देने के लिए समन्वय समिति की बैठक बुलाने का आग्रह किया जा चुका है, लेकिन अब तक केवल मौखिक आश्वासन ही मिला है। पांडेय ने कहा, ‘‘हमारे पास मजबूत संगठन क्षमता और विश्वसनीय जमीनी कार्यकर्ता हैं। यदि हमें अधिक सीटें मिलती हैं, तो महागठबंधन को फायदा होगा।’’
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