Latest Hindi News : वंदे मातरम् के 150 वर्ष का जश्न

By Anuj Kumar | Updated: November 8, 2025 • 12:04 PM

नई दिल्ली । देश राष्ट्र गीत वंदे मातरम् (Vande Bharat) के 150वें वर्ष का उत्सव मना रहा है। भारत के संविधान निर्माताओं ने वंदे मातरम् को वही दर्जा दिया है, जो राष्ट्र गान को मिला है। बहुत कम लोगों को पता है कि भारतीय ध्वज तिरंगे (Indian flag tricolor) की जो विकास यात्रा शुरू हुई, उसमें वंदे मातरम् राष्ट्र गीत की बहुत ही अहम भूमिका रही है। देश ने पहली बार स्वतंत्र भारत की परिकल्पना के साथ जो अपना ध्वज फहराया था, वह भले ही अनाधिकारिक रहा हो, लेकिन उसके बीचोंबीच में राष्ट्र के प्रतीक के तौर पर संस्कृत के दो शब्द वंदे मातरम् ही उकेरे गए थे।

संविधान सभा ने सर्वसम्मति से दिया राष्ट्र गीत का दर्जा

आजाद भारत में संविधान सभा के सभी सदस्यों ने वंदे मातरम् को राष्ट्र गीत के तौर पर सर्वसम्मति से स्वीकार किया था। 24 जनवरी, 1950 को जब देश के संविधान को अपनाने की घोषणा हो रही थी, तब देश के पहले राष्ट्रपति और संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Dr Rajendra Prasad) ने वंदे मातरम् को राष्ट्र गीत का दर्जा देने की घोषणा की।
उन्होंने कहा था — “वंदे मातरम् का गान, जिसका भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक महत्त्व रहा है, जन-गण-मन के समान ही सम्मान किया जाएगा और दोनों को ही समान दर्जा प्राप्त होगा।”

संन्यासी विद्रोह से जुड़ी गीत की पृष्ठभूमि

150 साल पहले महान स्वतंत्रता सेनानी बंकिम चंद्र चटर्जी की लिखी वंदे मातरम् गीत करोड़ों देशवासियों की देशभक्ति का प्रतीक रही है। इस गीत ने स्वतंत्रता संग्राम की दशा और दिशा बदलने में बड़ा योगदान दिया।
इस गीत की पृष्ठभूमि संन्यासी विद्रोह पर आधारित थी। इसकी रचना 1870 के दशक में बंगाल के भीषण अकाल के दौरान हुई, जब अंग्रेजी कुशासन और शोषण से जनता पीड़ित थी। इसी दौर में संन्यासी विद्रोह भड़का था।

आनंदमठ से निकला राष्ट्र गीत

वंदे मातरम् चटर्जी के प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ का हिस्सा है। अंग्रेजी हुकूमत ने जब ‘गॉड सेव द क्वीन’ गीत को अनिवार्य किया, तब उसके विरोध में चटर्जी ने 7 नवंबर 1875 को वंदे मातरम् की रचना की।
यह गीत जल्द ही राष्ट्र के प्रति भक्ति, समर्पण और अमरता का प्रतीक बन गया।

तिरंगे की यात्रा में ‘वंदे मातरम्’ की भूमिका

वंदे मातरम् की लोकप्रियता की वजह से ही जब गुलामी के काल में पहली बार भारत का तिरंगा फहराया गया, तो उसमें संस्कृत के ये शब्द लिखे गए थे। 1906 में स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन के दौरान कलकत्ता के पारसी बागान स्क्वायर में फहराए गए तिरंगे पर वंदे मातरम् लिखा हुआ था। इसका ऊपरी हिस्सा हरा, बीच में पीला और नीचे लाल रंग की पट्टी थी।

मैडम भीकाजी कामा ने भी फहराया ‘वंदे मातरम्’ वाला तिरंगा

1907 में मैडम भीकाजी कामा ने पेरिस में संशोधित तिरंगा फहराया। इसमें ऊपर केसरिया, बीच में पीली और नीचे हरी पट्टी थी, और वंदे मातरम् अपनी जगह पर कायम रहा। हालांकि, जुलाई 1947 में जिस तिरंगे को राष्ट्रध्वज के रूप में अपनाया गया, उसका स्वरूप पूरी तरह अलग था।

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