Latest Hindi News : अंतरिक्ष में चीनी चुनौती, स्वदेशी सुरक्षा बढ़ाने की जरूरत

By Anuj Kumar | Updated: November 7, 2025 • 10:51 AM

नई दिल्ली। चीन ने उपग्रहों का एक विशाल नेटवर्क (Vishal Network) तैयार कर रखा है, जिससे वह दुनिया भर में निगरानी और जासूसी करता है। यह अब कोई रहस्य नहीं रहा। लेकिन भारत ने अब उसकी इन “आँखों” को निष्क्रिय करने की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं।

भारत ने चीनी उपग्रहों पर कसी नकेल

राष्ट्रीय सुरक्षा को सशक्त करने और चीनी जासूसी से बचाव के लिए भारत ने चीन से जुड़े किसी भी उपग्रह के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना शुरू किया है। रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत के अंतरिक्ष नियामक इन-स्पेस (IN-SPACe) ने चीन और हांगकांग की एप्स्टार (Apstar) तथा एशियासैट (Asiasait) कंपनियों के प्रस्तावों को खारिज कर दिया है। ये कंपनियां भारत में उपग्रह सेवाएं देना चाहती थीं।

एशियासैट के उपग्रहों को सीमित अनुमति

एशियासैट कंपनी पिछले 33 वर्षों से भारत में सक्रिय रही है। फिलहाल उसे केवल दो उपग्रहों एशियासैट-5 और एशियासैट-7—के उपयोग की अनुमति मार्च 2026 तक दी गई है। अन्य उपग्रह—एएस6, एएस8 और एएस9—को मंजूरी नहीं मिली है। सूत्रों के अनुसार, जी और जियोस्टार जैसी प्रमुख प्रसारण कंपनियों को अब अपने सिग्नल भारतीय या अन्य देशों के उपग्रहों पर स्थानांतरित करने होंगे।

जी ने किया उपग्रह परिवर्तन

जी समूह ने पुष्टि की है कि उसने सितंबर 2025 में ही अपनी सेवाएं जीसैट-30, जीसैट-17 और इंटेलसैट-20 पर स्थानांतरित कर दी हैं। भारत में एशियासैट की साझेदार कंपनी इनऑर्बिट स्पेस ने इन-स्पेस से अनुमति विस्तार के लिए आवेदन किया है, लेकिन दीर्घकालिक मंजूरी पर अब तक कोई निर्णय नहीं हुआ है।

अब विदेशी उपग्रहों पर सख्त निगरानी

इन-स्पेस अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि अब सभी विदेशी उपग्रहों को भारत में सेवा देने के लिए पूर्व अनुमति लेनी होगी। वर्तमान में इंटेलसैट, स्टारलिंक, वनवेब, आईपीस्टार, ऑर्बिट कनेक्ट और इनमारसैट जैसी कंपनियों को मंजूरी दी गई है।

स्वदेशी ताकत से बनेगा मजबूत अंतरिक्ष तंत्र

भारत अब अपनी जीसैट श्रृंखला के जरिए अंतरिक्ष संचार और प्रसारण के लिए पर्याप्त क्षमता विकसित कर रहा है। पहले जहां विदेशी उपग्रहों पर निर्भरता मजबूरी थी, वहीं अब स्वावलंबन संभव हो रहा है। इन-स्पेस के अनुसार, भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र तेजी से विस्तृत हो रहा है और आने वाले वर्षों में इसका मूल्य 44 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।

वैश्विक स्तर पर बढ़ेगा भारत का योगदान

भारत की वैश्विक हिस्सेदारी वर्तमान 2 प्रतिशत से बढ़कर 8 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। सैटकॉम (SatCom) और प्रसारण क्षेत्र में भी तेजी से प्रगति की उम्मीद है। एलन मस्क की स्टारलिंक, अमेज़न की क्वीपर और जियो-एसईएस जैसी कंपनियां उपग्रह-आधारित इंटरनेट सेवाएं शुरू करने के लिए सरकारी मंजूरी की प्रतीक्षा में हैं।

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