J&K : किश्तवाड़ में बादल फटा और अचानक सैलाब में समा गए लोग

By Surekha Bhosle | Updated: August 15, 2025 • 12:52 PM

14 अगस्त दोपहर करीब 11:30 बजे, जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ (Kishtwar) जिले के चशोती (चोसीती) गांव में भारी बादल फटना (cloudburst) हुआ, जिसने अचानक फ्लैश फ्लड की स्थिति पैदा कर दी। पवित्र मचैल माता यात्रा (Machail Mata Yatra) में शामिल श्रद्धालुओं का एक बड़ा जत्था लंगर (community kitchen) में मौजूद था—जहां बड़े तूफ़ान के बीच लोग प्रार्थना या भोजन ले रहे थे

मरने वालों की संख्या कम से कम 56 पहुंच चुकी है, जिसमें दो CISF जवान भी शामिल हैं; 300 से अधिक घायल/राहत में हैं और 250 से अधिक लापता बताए जा रहे हैं। विभिन्न रिपोर्टों में 38‑46 के बीच मृतक बताए गए हैं—कई प्रभावित रिपोर्टों में 44–45 की पुष्टि भी हुई है।

Kishtwar Machail Mata Temple Tragedy: हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के बाद अब जम्मू-कश्मीर में बादल फटने से बड़ी तबाही हुई है. जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ के चशोती इलाके में गुरुवार को बादल फटने से आई बाढ़ में 60 लोगों को मौत हो गई. इसमें CISF के दो जवान भी शामिल हैं. इसके अलावा 200 लोग लापता बताए जा रहे हैं. किश्तवाड़ में बादल फटा और मचैल माता मंदिर के यात्रा मार्ग पर दो मिनट के अंदर पत्थर और मलबा का सैलाब आ गया. जो जहां था वहीं, दब गया या फंस गया. लोगों को सोचने समझने का बिलकुल भी मौका नहीं मिला.

9500 फीट की ऊंचाई पर है मंदिर

बाता दें कि मचैल माता मंदिर जाने वाले रास्ते के चशोती गांव में यह आपदा दोपहर के समय आई. हादसे के समय मचैल माता यात्रा के लिए बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे. किश्तवाड़ के एडिशनल एसपी प्रदीप सिंह ने कहा, यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण घटना है. हम सुबह से ही बचाव अभियान चला रहे हैं. अब तक 45 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 100 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं. 200 के करीब अभी भी लापता हैं.

9500 फीट की ऊंचाई पर स्थित मचैल माता मंदिर तक जाने के लिए श्रद्धालु चशोती गांव तक ही मोटर वाहन से पहुंच सकते हैं. उसके बाद उन्हें 8.5 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी होती है. प्रशासन ने लोगों के लिए अलर्ट जारी किया है. सर्च लाइट, रस्सियाँ और खुदाई के औज़ारों के रूप में राहत सामग्री आगे बढ़ाई जा रही है.

कब आई ये आपदा?

गुरुवार की दोपहर 12 बजकर 25 मिनट पर मचैल माता मंदिर जाने वाले मार्ग में पड़ने वाले चशोती गांव में यह आपदा आई. हादसे के समय घटनास्थल पर मचैल माता मंदिर यात्रा के लिए बड़ी संख्या में लोग वहां आए हुए थे. 25 जुलाई को शुरू हुई ये यात्रा 5 सितंबर को समाप्त होनी थी.

किश्तवाड़ शहर से लगभग 90 किलोमीटर दूर चशोती गांव में माता के भक्तों के लिए लंगर लगा था. इस आपदा से लंगर का सामुदायिक रसोईघर सबसे अधिक प्रभावित हुआ. बादल फटने के कारण अचानक बाढ़ आ गई और दुकानों एवं एक सुरक्षा चौकी सहित कई इमारतें बह गईं.

अचानक आई बाढ़ के कारण 16 आवासीय घर और सरकारी इमारतें, तीन मंदिर, चार पवन चक्की, 30 मीटर लंबा एक पुल तथा एक दर्जन से अधिक वाहन क्षतिग्रस्त हो गए.

उमर अब्दुल्ला ने रद्द किए कार्यक्रम

इस त्रासदी के बाद जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने 15 को होने वाली एट होम चाय पार्टी रद्द कर दी है. इसके साथ ही उन्होंने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर होने वाले समारोह के सास्कृतिक कार्यक्रमों को भी रद्द कर दिया है. राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल, पुलिस, राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल, सेना और स्थानीय वॉलनटिअसर्स राहत बचाव कार्य में लगे हुए है. सर्च लाइट, रस्सियाँ और खुदाई के औज़ारों के रूप में राहत सामग्री आगे बढ़ाई जा रही है.

गृह मंत्री ने उपराज्यपाल व मुख्यमंत्री से की बात

किश्तवाड़ में बादल फटने की घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घटना पर शोक जताया. उन्होंने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री से बात की और हर संभव मदद का आश्वसन दिया. प्रशासन राहत एवं बचाव कार्य चला रहा है तथा राष्ट्रीय आपदा मोचन बल की टीमें घटनास्थल पर पहुंच गई हैं. शाह ने ‘एक्स’ पर कहा कि किश्तवाड़ ज़िले में बादल फटने की घटना पर जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री से बात की. स्थानीय प्रशासन राहत और बचाव कार्य कर रहा है. एनडीआरएफ की टीमें तुरंत घटनास्थल पर पहुंच गई हैं.

बादल फटने का मुख्य कारण क्या है?

जब मानसूनी या नमी युक्त हवाएं किसी पहाड़ी क्षेत्र से टकराती हैं, तो वे तेजी से ऊपर की ओर उठती हैं।ऊंचाई पर जाकर ये हवाएं ठंडी हो जाती हैं, जिससे इनमें मौजूद भाप अचानक पानी की बूंदों में बदल जाती है। नतीजा एक सीमित क्षेत्र में बहुत तेज और भारी बारिश होती है जिसे बादल फटना कहा जाता है।

बादल का फटना कैसे होता है?

बादल फटना तब होता है जब गर्म, नम हवा तेज़ी से पहाड़ों से ऊपर उठती है, ठंडी होकर भारी बारिश में बदल जाती है। इस प्रक्रिया को ऑरोग्राफिक लिफ्ट कहते हैं, जिसके कारण हवा कम समय में भारी मात्रा में बारिश छोड़ती है।

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