सीजेआई पर जूता फेंकने की कोशिश से मचा हंगामा
नई दिल्ली: नई दिल्ली में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) में उस समय अफरा-तफरी मच गई, जब वकील राकेश किशोर(Rakesh Kishore) ने भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई(B.R. Gavai) पर जूता फेंकने की कोशिश की। यह घटना सुनवाई के दौरान हुई, जिसके बाद सुरक्षा कर्मियों ने वकील को तत्काल बाहर निकाल दिया। उसने सीजेआई पर सनातन धर्म के अपमान का आरोप लगाया था। इस घटना के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने वकील का लाइसेंस निलंबित कर दिया है।
जजों पर लगातार बढ़ रहे हमले
यह पहली बार नहीं है जब न्यायपालिका के सदस्य गुस्से का निशाना बने हों। बीते वर्षों में कई जजों को धमकियाँ, फिरौती की माँग और अपमानजनक व्यवहार का सामना करना पड़ा है। सितंबर 2025 में मध्य प्रदेश के रीवा जिले में कार्यरत एक सिविल जज को 500 करोड़ रुपये की फिरौती का पत्र भेजा गया। पत्र में चेतावनी दी गई थी कि रकम न देने पर जान से मार दिया जाएगा। पुलिस जांच में पता चला कि पत्र प्रयागराज से स्पीड पोस्ट के जरिए भेजा गया था।
ऐसे ही एक और मामले में अप्रैल 2025 में एक रिटायर्ड शिक्षक ने महिला जज को धमकी दी थी। वह चेक बाउंस के पुराने मामले में दोषी ठहराए जाने से नाराज़ था। अदालत में उसने जज के प्रति अपमानजनक भाषा का प्रयोग किया और धमकी दी कि “बाहर निकल, देखता हूँ जिंदा कैसे जाती है।” इससे कोर्ट में हंगामा मच गया था।
पुरानी घटनाओं से झकझोरती परंपरा
साल 2015 में एक वकील द्वारा महिला जज के खिलाफ अशोभनीय टिप्पणी करने का मामला सामने आया था। जज ने सुनवाई के दौरान उसकी अपमानजनक भाषा पर एफआईआर दर्ज करवाई थी। ऐसे मामले न्यायपालिका की गरिमा पर सवाल उठाते हैं।
इतिहास पर नज़र डालें तो मार्च 2009 में सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) के पूर्व जज अरिजीत पसायत पर एक वादी ने चप्पल फेंकी थी और अपमानजनक टिप्पणी की थी। अदालत में इस घटना ने गहरी नाराज़गी पैदा की थी और आरोपियों पर सख्त कार्रवाई की गई थी।
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न्यायपालिका की सुरक्षा पर उठे सवाल
लगातार बढ़ती ऐसी घटनाएँ न्यायिक सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरी को उजागर करती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि न्यायिक अधिकारियों को उच्चस्तरीय सुरक्षा दी जानी चाहिए ताकि वे बिना डर के न्याय कर सकें। हालांकि ऐसी घटनाएँ दुर्लभ हैं, फिर भी उनका प्रभाव न्यायिक गरिमा पर गहरा पड़ता है।
क्या न्यायपालिका की सुरक्षा व्यवस्था पर्याप्त है?
विशेषज्ञों का कहना है कि अदालतों में सुरक्षा प्रोटोकॉल मौजूद हैं, लेकिन उनकी निगरानी और आधुनिक उपकरणों का उपयोग और बढ़ाने की आवश्यकता है। सुरक्षा में लापरवाही गंभीर परिणाम दे सकती है।
क्या अपराधियों पर कड़ी कार्रवाई होती है?
सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) और राज्य सरकारें ऐसे मामलों में सख्त रवैया अपनाती हैं। दोषियों के खिलाफ तत्काल कानूनी कार्रवाई की जाती है ताकि भविष्य में कोई अदालत की गरिमा भंग करने की हिम्मत न कर सके।
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