Bihar: ‘वोटबंदी’ कर रहा EC, कट जाएंगे 2 करोड़ मतदाताओं के नाम

By Anuj Kumar | Updated: July 3, 2025 • 8:01 AM

कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने चेतावनी दी कि इस प्रक्रिया में कम से कम दो करोड़ मतदाताओं को बाहर किया जा सकता है, खासकर दलित, आदिवासी, प्रवासी मजदूर और गरीब तबकों को।

बिहार में प्रस्तावित विधानसभा चुनावों से पहले चुनाव आयोग (ECI) द्वारा की जा रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया को लेकर बुधवार को 11 विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध जताया। इन दलों ने चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात कर आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया वंचित तबकों को निशाना बना रही है और इससे लाखों वास्तविक मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हट सकते हैं। कांग्रेस, राजद, भाकपा, माकपा, भाकपा (माले) लिबरेशन, सपा और एनसीपी (शरद पवार गुट) समेत (INDIA) गठबंधन के नेताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार से मुलाकात की और एक संयुक्त ज्ञापन सौंपा।

\विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया से बिहार के हाशिए पर खड़े लाखों लोगों का नाम वोटर लिस्ट से हटाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मतदाताओं से स्वयं और उनके माता-पिता के जन्म प्रमाण पत्र मांगना न केवल जटिल और अनुचित है बल्कि यह 8.1 करोड़ मतदाताओं पर एक अत्यधिक बोझ है।

यह तो वोटबंदी है- दीपांकर

चुनाव आयोग ने प्रस्ताव रखा है कि जो व्यक्ति 2003 की वोटर लिस्ट में दर्ज हैं उन्हें मतदाता माना जाएगा बाकी को फिर से नामांकन के लिए दस्तावेज देने होंगे। विपक्ष का कहना है कि यह अस्पष्ट और कानूनन आधारहीन वर्गीकरण है, जो बिना किसी वैध कारण के लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित कर सकता है। माले के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने कहा, “2003 की वोटर लिस्ट में ना होने पर नागरिकता साबित करनी होगी। यह तो सीधी ‘वोटबंदी’ है।”

दो करोड़ वोटर हो सकते हैं बाहर

कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने चेतावनी दी कि इस प्रक्रिया में कम से कम दो करोड़ मतदाताओं
को बाहर किया जा सकता है, खासकर दलित, आदिवासी, प्रवासी मजदूर और गरीब तबकों को। उन्होंने यह भी कहा कि यदि किसी का नाम हटाया गया तो चुनाव घोषित हो जाने के बाद उसे अदालत में चुनौती देना भी संभव नहीं होगा, क्योंकि उस दौरान अदालतें चुनाव संबंधी मामलों की सुनवाई से परहेज करती हैं।

क्या पिछले 22 साल के चुनाव गलत थे?

सिंघवी ने चुनाव आयोग से यह सवाल भी उठाया कि 2003 से लेकर अब तक हुए कई चुनावों में कोई बड़ी गड़बड़ी नहीं बताई गई, तो फिर अब अचानक विशेष संशोधन की आवश्यकता क्यों महसूस हुई? उन्होंने कहा कि 22 सालों में 4-5 चुनाव हुए, क्या वे सब गलत थे?

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