नई दिल्ली,। भारत-रूस के संबंध एक बार फिर नई ऊंचाई पर पहुंचे हैं। दोनों देशों ने 23वें रूस-भारत वार्षिक शिखर सम्मेलन में दोस्ती को और मजबूत करने का संकल्प दोहराया। यह बैठक ऐसे समय में हुई है जब वैश्विक स्तर पर तनाव गहराया हुआ है और अमेरिका (America) लगातार भारत पर रूस से दूरी बनाने का दबाव बढ़ा रहा है।
अमेरिका का दबाव बनाने का प्लान फेल
अमेरिका द्वारा रूसी तेल पर पाबंदी और भारत (India) पर कड़े टैरिफ लगाने जैसी रणनीतियाँ नाकाम होती दिख रही हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पीएम नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Bladimir Putin) के बीच हुई बैठक में भले ही पश्चिमी दबावों पर सीधा जवाब नहीं दिया गया, लेकिन संदेश स्पष्ट था—भारत अपनी सामरिक स्वायत्तता से कोई समझौता नहीं करेगा। अब पुतिन यात्रा के बाद अमेरिका 10-12 दिसंबर को भारत से ट्रेड और टैरिफ पर बातचीत के लिए एक उच्चस्तरीय टीम भेज रहा है।
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यूरोपीय देशों का विरोध भी बेअसर
पुतिन की यात्रा से ठीक पहले ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के दूतों ने एक भारतीय अखबार में रूस की आलोचना वाला संयुक्त लेख प्रकाशित किया था। इसे भारत के रुख को प्रभावित करने की एक कोशिश माना जा रहा था, लेकिन इसका कोई असर नहीं दिखा। भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह ऊर्जा और रक्षा के क्षेत्र में अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देगा।
रक्षा समझौतों पर भी हुई बड़ी बात
भारत ने रूस के साथ अपने दीर्घकालिक रक्षा सहयोग की पुन: पुष्टि की। पनडुब्बियों और लड़ाकू विमानों के लिए नए अनुबंधों के अलावा संयुक्त उत्पादन पर भी चर्चा हुई। दूसरी ओर अमेरिका लगातार भारत को रक्षा खरीद में विविधता लाने का दबाव दे रहा है।
डॉलर सिस्टम के विकल्प पर भी बढ़े कदम
स्विफ्ट जैसी पश्चिमी वित्तीय प्रणालियों को दरकिनार करने के लिए रूस ने रूपये-रूबल में व्यापार बढ़ाने और अपनी घरेलू वित्तीय संदेश प्रणाली के उपयोग का प्रस्ताव दिया है। ब्रिक्स जैसे मंच भी डॉलर आधारित वैश्विक वित्त व्यवस्था के विकल्प तलाशने की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ रहे हैं।
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