भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा मंदिर की संरचनात्मक स्थिति की जांच के लिए की जा रही 9 मीटर की नो-वाइब्रेशन ड्रिलिंग के दौरान यह रास्ता सामने आया। एएसआई के सुपरिंटेंडेंट डी.बी. गडनायक ने इसकी आधिकारिक पुष्टि की।
122 साल बाद शुरू हुई ऐतिहासिक खुदाई
13वीं शताब्दी में निर्मित कोणार्क सूर्य (Konark Temple) मंदिर के गर्भगृह को 1903 में ब्रिटिश प्रशासन ने संरचना कमजोर होने के कारण रेत और पत्थरों से भरकर पूरी तरह बंद कर दिया था। करीब 122 साल बाद अब एएसआई ने गर्भगृह में भरी रेत हटाने का अभियान पारंपरिक विधि-विधान के साथ शुरू किया है।
कैसे मिला रास्ता
मंदिर की पश्चिम दिशा में स्थित पहली पिंढ़ी पर 16 इंच की पाइप से 9 मीटर गहराई तक नो-वाइब्रेशन तकनीक से ड्रिलिंग की गई। इसी दौरान गर्भगृह तक जाने वाला एक संभावित मार्ग मिला।
इसके अलावा मंदिर की दीवारों की मजबूती का वैज्ञानिक आकलन करने के लिए 17 इंच की कोर-ड्रिलिंग भी की गई।
गर्भगृह में ऐसे हटाई जा रही है रेत
एएसआई की विशेषज्ञ टीम (Expert Team) ने गर्भगृह के प्रथम मंडप के पश्चिमी हिस्से में 4×4 फुट का एक सुरंग मार्ग तैयार कर रेत निकालने का कार्य शुरू किया। पूरी प्रक्रिया एएसआई अधीक्षक डी.बी. गडनायक और क्षेत्रीय निदेशक दिलीप खमारी की निगरानी में की जा रही है। करीब 10 विशेषज्ञों की टीम संरचना की मजबूती, स्थिरता और सुरक्षा से जुड़ी प्रत्येक परत की बारीकी से जांच कर रही है।
कोणार्क मंदिर के पीछे की कहानी क्या है?
कोणार्क मंदिर की कहानी भगवान कृष्ण के पुत्र सांब से जुड़ी है, जिन्होंने कुष्ठ रोग से मुक्ति पाने के लिए चंद्रभागा नदी के किनारे सूर्यदेव की तपस्या की थी। इस तपस्या के बाद उन्हें सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली, जिसे उन्होंने यहीं स्थापित किया और मंदिर का निर्माण करवाया। इस मंदिर को पूर्वी गंग राजवंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम ने 13वीं सदी में बनवाया था और इसे सूर्य देव के रथ के रूप में डिजाइन किया गया था
कोणार्क क्यों प्रसिद्ध है?
कोणार्क अपने अद्भुत सूर्य मंदिर के लिए प्रसिद्ध है, जिसे 13वीं सदी में राजा नरसिंहदेव प्रथम ने सूर्य देव के रथ के रूप में बनवाया था; यह मंदिर अपनी विशाल रथ-आकार की संरचना, 24 अलंकृत पहियों, जटिल नक्काशी (जिसमें कामुक और दैनिक जीवन के दृश्य शामिल हैं)
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