आजमगढ़ ब्यूरो. आज़मगढ़ जिले के फूलपुर (Phulpur) विद्युत खंड में एक बड़ा भ्रष्टाचार का मामला प्रकाश में आ रहा है। जानकारी के अनुसार, बड़े अधिकारीयों द्वारा विभागीय प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हुए सैकड़ों बिजली (Power) उपभोक्ताओं के बकाया बिल अवैध तरीके से बंद कर दिए गए। बताया जा रहा है कि इस पूरी प्रक्रिया में मोटी रकम वसूली गई, जिससे विभाग को लाखों नहीं बल्कि करोड़ों रुपये का नुकसान उठाना पड़ा।
हाला की ये सारा कारनामा एक प्रशासनिक लेटर आने के बाद किया गया, जिसमे वैधानिक ढंग से बकाया बिलो का निबटान किया जाना थ। लेकिन सूत्रों के अनुसार नियमो को ताक पर रख कर गैरविधिक ढंग से बिलो को या तो ख़त्म कर दिया गया है या फिर उसमे कम पैसे में सेटलमेंट कर दिया गया है। इस पूरे मामले कितनी सच्चाई है ये तो गहन जांच का हिस्सा है। लेकिन सूबे के मन्त्री एके शर्मा अपने अधिकारियो और कर्मचारियों को साफ निर्देश दे चुके है कि, किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार बर्दास्त नहीं किया जायेगा।
अब देखना होगा कि इस मामले में कब और इतनी सच्चाई बहार आती है.
इस तरह की हेराफेरी से जहां उपभोक्ता का तो सीधा लाभ हुआ, वहीं विभाग को राजस्व का भारी नुकसान झेलना पड़ा।
दस्तावेज़ों के अनुसार, कई उपभोक्ता जैसे —
ख़ुदैजा, पत्नी अंसार अहमद (ग्राम रसलपुर, आज़मगढ़)
अबू ओबैदा, पुत्र मुजफ्फर अली (राजापुर सिकरौर, आज़मगढ़)
अबुल कासिम, पुत्र सफीक अहमद (नंदाव मोर, सरायमीर)
निर्मल, पुत्र मेहरू राम (केदारपुर सरायन, आज़मगढ़)
महात्मा बुध मौर्य, पुत्र रामकुबेर मौर्य (महुल, आज़मगढ़)
सूत्रो के अनुसार इन सभी के बिल गलत तरीके से बंद किए गए या उनमें हेराफेरी की गई। सूची में ऐसे सैकड़ों नाम दर्ज हैं, जिससे साफ़ है कि यह घोटाला सुनियोजित ढंग से किया गया।
अंदरखाने ने नाम न बतने कि शर्त पर कुछ अधिकारियो क कहना है कि इस तरह के घोटाले न केवल राजस्व हानि का कारण बनते हैं, बल्कि विभागीय विश्वास को भी पूरी तरह खत्म कर देते हैं। आम जनता जो ईमानदारी से बिल जमा करती है, वह खुद को ठगा हुआ महसूस करती है। दूसरी ओर भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारी अनुशासन और जवाबदेही से मुक्त होकर मनमानी करते हैं।
यह भि चर्चा है कि, यह मामला अब उच्च अधिकारियों तक पहुँच चुका है और जांच तेज हो गई है। यदि आरोप साबित होते हैं, तो यह न केवल बिजली विभाग के लिए बल्कि शासन-प्रशासन के लिए भी बड़ी चुनौती होगी। इस घोटाले ने यह सवाल भी खड़ा कर दिया है कि आखिर विभागीय निगरानी और ऑडिट की प्रक्रिया इतनी कमजोर क्यों है कि कोई अकेला अधिकारी आईडी का दुरुपयोग कर करोड़ों का गबन कर लेता है।
आम जनता की मांग है कि ऐसे अधिकारियों पर कठोर कार्यवाही हो, ताकि भविष्य में कोई भी अधिकारी जनता के हितों और विभागीय राजस्व से खिलवाड़ करने की हिम्मत न जुटा सके। यह घटना एक बार फिर साबित करती है कि भ्रष्टाचार केवल आर्थिक नुकसान नहीं करता, बल्कि प्रशासनिक तंत्र पर से जनता का भरोसा भी खत्म कर देता है।
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