Nepal में राजशाही के समर्थन में प्रदर्शन, अब कैसे हैं हालात? – ग्राउंड रिपोर्ट
Nepal एक बार फिर राजनीतिक उथल-पुथल का गवाह बन रहा है। राजशाही की वापसी की मांग को लेकर हजारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं। बीते कुछ हफ्तों से काठमांडू, पोखरा और बीरगंज जैसे शहरों में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। इन प्रदर्शनों ने न सिर्फ सरकार की चिंता बढ़ा दी है, बल्कि देश की जनता के भीतर गहराई से चल रही असंतोष की भावना को भी उजागर किया है।

प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं?
सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि जनता में राजशाही को लेकर सहानुभूति क्यों पनप रही है।
- दरअसल, 2008 में राजशाही को खत्म कर Nepal को गणराज्य घोषित किया गया था।
- उस समय उम्मीद थी कि लोकतंत्र के आने से विकास तेज होगा, भ्रष्टाचार घटेगा और जनता को बेहतर शासन मिलेगा।
- हालांकि, बीते वर्षों में राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार, और बढ़ती महंगाई ने आम लोगों का भरोसा कमजोर कर दिया है।
इस असंतोष के चलते अब एक वर्ग यह मानने लगा है कि राजशाही के समय व्यवस्था ज्यादा स्थिर और पारदर्शी थी।
किसका नेतृत्व कर रहा है आंदोलन?
इस आंदोलन का नेतृत्व कोई खास राजनीतिक पार्टी नहीं कर रही है।
- पूर्व राजा ज्ञानेन्द्र शाह के समर्थक, कुछ हिंदू राष्ट्रवादी समूह, और स्थानीय नागरिक मंच इसका नेतृत्व कर रहे हैं।
- प्रदर्शनकारियों का नारा है: “राजा आऊ, देश बचाऊ”, जिसका अर्थ है – “राजा लौटे, देश बचे”।
इसके साथ ही यह आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण बताया जा रहा है, हालांकि कुछ जगहों पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें भी हुई हैं।
सरकार का क्या रुख है?
Nepal सरकार इन प्रदर्शनों को जनता की लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति बता रही है।
- हालांकि, आंतरिक सुरक्षा एजेंसियों को हाई अलर्ट पर रखा गया है।
- प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने बयान दिया कि “लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश सफल नहीं होगी।”
यह बयान यह संकेत करता है कि सरकार फिलहाल राजशाही की वापसी की संभावना को नकार रही है, लेकिन जनता की नाराजगी को नजरअंदाज करना मुश्किल होगा।
वर्तमान हालात कैसे हैं?
स्थिति फिलहाल नियंत्रण में है, लेकिन तनाव बना हुआ है।
- सड़कों पर अब भी छोटे-बड़े प्रदर्शन जारी हैं।
- सरकार ने राजधानी में धारा 144 लगाने की बात से इनकार किया है, लेकिन सुरक्षाबलों की मौजूदगी काफी बढ़ा दी गई है।
अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों का मानना है कि यदि सरकार ने जनता की मांगों को गंभीरता से नहीं लिया, तो यह आंदोलन लंबे समय तक चल सकता है।
Nepal की जनता क्या चाहती है?
हर प्रदर्शनकारी के पास अलग-अलग वजहें हैं, लेकिन एक सामान्य भावना यह है:
- “हमें एक ऐसा नेतृत्व चाहिए जो जवाबदेह हो।”
- “राजशाही के समय भ्रष्टाचार नहीं था।”
- “वर्तमान सरकारों ने केवल वादे किए, विकास नहीं।”
इसका मतलब यह नहीं कि पूरा देश राजशाही की वापसी चाहता है, लेकिन एक बड़ा वर्ग अब विकल्पों की तलाश में है।
Nepal में राजशाही की वापसी को लेकर उठी यह लहर केवल एक राजनीतिक आंदोलन नहीं, बल्कि जनता की पीड़ा और निराशा की अभिव्यक्ति है।
भले ही सरकार फिलहाल इसे शांतिपूर्ण ढंग से देख रही हो, लेकिन यदि जल्द समाधान नहीं निकला, तो यह आंदोलन देश की स्थिरता को चुनौती दे सकता है।