Nepal हिंसा पर प्रचंड का बड़ा बयान: “नेपालियों की उदारता को कमजोरी न समझें राजतंत्रवादी”
नेपाल इन दिनों फिर से राजनीतिक अस्थिरता और हिंसक प्रदर्शनों की चपेट में है। लोकतंत्र और राजतंत्र के समर्थकों के बीच की खींचतान ने देश के सामाजिक ताने-बाने को झकझोर कर रख दिया है। इसी बीच नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ का एक कड़ा और स्पष्ट बयान सामने आया है, जिसने राजनीतिक हलकों में चर्चा को और तेज कर दिया है।

राजनीतिक तनाव के बीच प्रचंड की चेतावनी
काठमांडू में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री प्रचंड ने कहा,
“Nepalies की उदारवादी सोच को उनकी कमजोरी समझना भारी भूल होगी। जो ताकतें राजतंत्र की वापसी का सपना देख रही हैं, उन्हें लोकतंत्र की शक्ति को कम नहीं आंकना चाहिए।“
यह बयान ऐसे समय आया है जब राजधानी काठमांडू समेत कई अन्य इलाकों में राजतंत्र समर्थकों और लोकतंत्र समर्थकों के बीच झड़पें हो रही हैं।
बढ़ती हिंसा का कारण क्या है?
नेपाल में हाल ही में हुई कुछ घटनाओं ने फिर से राजशाही की बहाली की मांग को हवा दी है। राजतंत्र समर्थक संगठनों ने आरोप लगाया है कि वर्तमान सरकार भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और विकास के मुद्दों को सुलझाने में विफल रही है। इसी नाराजगी को भुनाते हुए कुछ गुट राजतंत्र की वापसी की मांग कर रहे हैं। इन प्रदर्शनों में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच कई बार हिंसक झड़पें हो चुकी हैं।
प्रचंड ने क्यों दिया इतना कड़ा बयान?
पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ स्वयं माओवादी आंदोलन के नेता रह चुके हैं और उन्होंने नेपाल में राजतंत्र को समाप्त कर गणराज्य की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी। उनका कहना है कि
“हमने गणराज्य की स्थापना के लिए बलिदान दिया है। यह कोई समझौता नहीं, बल्कि जन-आंदोलन की उपलब्धि है।“
प्रचंड ने चेताया कि यदि कोई ताकत संविधान और लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश करेगी, तो सरकार और जनता दोनों ही उसका कड़ा जवाब देंगे।
राजतंत्र समर्थकों की ओर से क्या प्रतिक्रिया आई?
राजतंत्र समर्थक संगठनों ने प्रचंड के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि यह बयान “जनता की भावनाओं का अपमान” है और सरकार को विरोध की आवाज़ दबाने के बजाय संवाद की पहल करनी चाहिए।हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इन प्रदर्शनों के पीछे सिर्फ राजशाही की वापसी ही नहीं, बल्कि मौजूदा व्यवस्था के प्रति जनता का असंतोष भी बड़ा कारण है।
Nepal की वर्तमान राजनीतिक स्थिति
नेपाल ने 2008 में राजतंत्र को समाप्त कर गणराज्य की स्थापना की थी। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में लगातार सरकार बदलती रही है और स्थिर शासन की कमी महसूस की जा रही है।प्रचंड की सरकार फिलहाल गठबंधन पर आधारित है, और विपक्ष लगातार सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है।इन हालातों में राजतंत्र समर्थकों को जनता के असंतोष को भुनाने का मौका मिल रहा है।
सुरक्षा व्यवस्था और सरकारी कदम
प्रचंड सरकार ने बढ़ती हिंसा को देखते हुए राजधानी काठमांडू और प्रमुख शहरों में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती की है। गृह मंत्रालय ने बताया कि अब तक दर्जनों प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया है और कई स्थानों पर धारा 144 लागू की गई है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
भारत, चीन और अमेरिका समेत कई पड़ोसी और अंतरराष्ट्रीय देशों ने नेपाल में शांति बनाए रखने की अपील की है। संयुक्त राष्ट्र ने भी नेपाल सरकार से आग्रह किया है कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करते हुए जनसाधारण की सुरक्षा सुनिश्चित करे।पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड का यह बयान एक राजनीतिक चेतावनी है कि नेपाल की लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती देने वालों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। देश को स्थिरता, संवाद और पारदर्शी शासन की ज़रूरत है — न कि हिंसा और अराजकता की।यदि राजतंत्र बनाम लोकतंत्र की यह लड़ाई और बढ़ती है, तो इसका प्रभाव केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक स्तर पर भी गहरा हो सकता है। ऐसे में सभी पक्षों को संयम और संवाद की ओर बढ़ना होगा।