नॉर्थ ईस्ट में नया विवाद…अरुणाचल में 47 साल पराने कानून पर क्यों मचा बवाल

By digital@vaartha.com | Updated: March 11, 2025 • 5:54 AM

अरुणाचल प्रदेश में 1978 के धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम को लेकर विवाद गहरा रहा है. 47 सालों बाद भी अधिनियम के नियम नहीं बने हैं. हाईकोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार नियम बनाने जा रही है, जिसके कारण ईसाई संगठन कानून का विरोध कर रहे हैं. वनवासी कल्याण आश्रम ने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है. यह अधिनियम धर्मांतरण रोकने और स्थानीय जनजातियों की संस्कृति की रक्षा के लिए बनाया गया था.

नॉर्थ ईस्ट में एक बार फिर नया विवाद छिड़ गया है. अरुणाचल प्रदेश में 1978 के धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम को लेकर एक विवाद गहरा गया है. 47 साल बाद भी अधिनियम के नियम नहीं बने हैं. गुवाहाटी उच्च न्यायालय के आदेश के बाद राज्य सरकार नियम बनाने जा रही है, जिससे ईसाई संगठन विरोध कर रहे हैं. यही कारण है कि वनवासी कल्याण आश्रम ने केंद्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है. यह अधिनियम स्थानीय जनजातियों की धार्मिक संस्कृति की रक्षा के लिए बनाया था.

क्या है अरुणाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम?

अरुणाचल प्रदेश सरकार धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम,1978 के नियम को अधिसूचित करने को लेकर सूबे की राजनीति गरमा गई है. कानून बनने के बावजूद पिछले 47 साल से नियम क्यों नहीं बने और लागू नहीं हो पाने के पीछे क्या है कारण?

पिछले कई दिनों से देश के सीमावर्ती राज्य अरुणाचल प्रदेश में हाई कोर्ट के एक फैसले और आदेश के खिलाफ चर्च और ईसाई संगठनों की तरफ से विरोध-प्रदर्शन किया जा रहा है. ये अधिनियम जनता पार्टी सरकार में पी के थुंगन के मुख्यमंत्री काल 1978 में बनाया गया था.

क्यों बनाया गया था ये अधिनियम?

अरुणाचल प्रदेश में साल 1978 में बने इस अधिनियम के बनाने के पीछे का कारण धर्मांतरण था. उस समय जनता पार्टी सरकार ने जनजातियों की धर्म-संस्कृति की रक्षा करने और एक धर्म से दूसरे धर्म में लोभ-लालच, दबाव या धोखाधड़ी से होने वाले धर्मांतरणों को रोकने के लिए बनाया था. धर्मांतरणों को रोकने और सरकारी रिकॉर्ड में ऐसे धर्मांतरणों को रिकॉर्ड करने के लिए यह कानून बनाया था.

विधानसभा में अधिनियम पारित होने और 25 अक्टूबर 1978 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बावजूद अभी तक नियम नहीं बनने के चलते यह कानून पिछले 47 वर्षों से आज तक लागू नहीं हो सका.

कोर्ट के फैसले के बाद फिर चर्चा

30 सितम्बर 2024 को गुवाहाटी हाई कोर्ट की ईटानगर बेंच ने एक जन-हित याचिका पर आदेश दिया कि राज्य सरकार उसके आदेश के 6 महीनों के अंदर इस कानून को लागू करने के लिए नियम अधिसूचित कर अपनी क़ानूनी जिम्मेदारी पूरी करे.

हाई कोर्ट के आदेश को तामील करने की तारीख जैसे जैसे नजदीक आ रहा है यानी जैसे जैसे 6 महीने की यह अवधि निकट आने लगी. राज्य सरकार ने भी स्पष्ट कर दिया कि वह कोर्ट के आदेश को स्वीकार कर नियम अधिसूचित करेगी. तब से न केवल अरुणाचल ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्यों के चर्च और वहां के ईसाई संगठनों और ने इसका पुरजोर विरोध करना शुरू कर दिया.

कानून के समर्थन में उतरा संघ

इस विवाद के बढ़ने के बाद आरएसएस से जुड़ा संगठन वनवासी कल्याण आश्रम अब कूद पड़ा है. वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष सतेन्द्र सिंह ने बयान जारी कर राज्य सरकार से मांग की है कि हाईकोर्ट के आदेश को जल्द लागू किया जाए.

उन्होंने एक बयान जारी कर कहा है कि राज्य सरकार अपना संवैधानिक दायित्व को पूरा करते हुए अविलम्ब नियम अधिसूचित करे. इस कानून का कड़ाई से पालन शुरू करे. वनवासी कल्याण आश्रम ने केंद्र सरकार खासकर देश के गृह मंत्री अमित शाह से भी अनुरोध किया है कि वो इस मामले में अविलम्ब हस्तक्षेप कर राज्य की स्थिति को और बिगड़ने से रोकें और राज्य सरकार को संवैधानिक विफलता से बचाएं.

इसके पहले ऐसे ही कानून मध्य प्रदेश एवं ओड़िसा में और बाद में देश के कई अन्य राज्यों ने भी बनाए , इन सब कानूनों को देश का सर्वोच्च न्यायालय भी संवैधानिक रूप से सही ठहरा चुका है.




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