पहलगाम हमले के बाद बीजेपी सांसद Nishikant Dubey का बड़ा बयान: “अब अनुच्छेद 26 से 29 हटाने का समय आ गया है”
हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने देश को झकझोर कर रख दिया है। इस हमले में कई निर्दोष नागरिक घायल हुए और देशभर में शोक की लहर फैल गई। इस घटना के बाद बीजेपी सांसद Nishikant Dubey ने एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि “अब वक्त आ गया है कि हम अनुच्छेद 26 से 29 को हटाएं।”

लेकिन सवाल उठता है, क्या हैं ये अनुच्छेद और क्यों उठी इन्हें हटाने की मांग? आइए जानते हैं विस्तार से।
अनुच्छेद 26 से 29 क्या हैं?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 से 29 मौलिक अधिकारों के अंतर्गत सांस्कृतिक और धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित हैं:
- अनुच्छेद 26: धार्मिक संस्थानों को अपने धार्मिक मामलों को संचालित करने का अधिकार।
- अनुच्छेद 27: किसी व्यक्ति को उस धर्म के प्रचार-प्रसार हेतु कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
- अनुच्छेद 28: शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा से संबंधित दिशा-निर्देश।
- अनुच्छेद 29: किसी भी नागरिक को अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति को संरक्षित रखने का अधिकार।
➡ ये सभी अनुच्छेद नागरिकों को धार्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक अधिकार प्रदान करते हैं।
Nishikant Dubey का तर्क
बीजेपी सांसद ने हमले के बाद ट्वीट कर कहा कि अब समय आ गया है कि इन अनुच्छेदों की समीक्षा की जाए, क्योंकि ये कुछ विशेष समूहों को अत्यधिक संरक्षण और छूट देते हैं, जिससे आतंक और कट्टरपंथ को बढ़ावा मिल सकता है।
उनके अनुसार:
“जब तक हम संविधान में मौजूद असंतुलित विशेष अधिकारों को नहीं हटाते, तब तक समान नागरिक संहिता और आतंक के खिलाफ कड़ा कदम लेना मुश्किल होगा।”
क्या है इसका संवैधानिक और राजनीतिक महत्व?
- संविधान में मौलिक अधिकारों में संशोधन करना बहुमत और संसद की सहमति से ही संभव है।
- अनुच्छेद 26–29 को हटाना या संशोधित करना एक संवेदनशील और विवादास्पद मुद्दा बन सकता है, खासकर अल्पसंख्यकों और धर्मनिरपेक्षता के समर्थकों के बीच।
- इससे पहले अनुच्छेद 370 और 35A को हटाकर सरकार ने कश्मीर में ऐतिहासिक बदलाव किया था।

विपक्ष की प्रतिक्रिया?
अब तक विपक्ष की ओर से Nishikant Dubey के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस मुद्दे को उठाना राजनीतिक माहौल में गर्मी ला सकता है, खासकर चुनावी मौसम में।जहां एक ओर पहलगाम जैसे आतंकी हमले देश की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हैं, वहीं दूसरी ओर, संवैधानिक अनुच्छेदों को हटाने या बदलने की मांग बहस और समझदारी की मांग करती है।