ऐसी मान्यता है कि प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद का समय) में भगवान शिव कैलाश पर्वत पर आनंद तांडव करते हैं और सभी देवता उनकी स्तुति करते हैं. इस दिन विधि-विधान से पूजा करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है और कष्ट दूर होते हैं।
Som Pradosh Vrat 2025 Shiv Parvati Puja Vidhi: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित एक महत्वपूर्ण व्रत है. यह व्रत हर महीने के दोनों पक्षों (कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष) की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है. ‘प्रदोष’ शब्द का अर्थ है सूर्यास्त के बाद का वह समय जब रात और दिन मिलते हैं. मान्यताओं के अनुसार, यह वह विशेष काल होता है जब भगवान शिव कैलाश पर्वत पर आनंद तांडव करते हैं और सभी देवी-देवता उनकी स्तुति करते हैं. इसलिए इस समय की गई पूजा बहुत फलदायी मानी जाती है।
प्रदोष (Pradosh ) व्रत का महत्व सप्ताह के दिन के अनुसार बदलता है जिस दिन यह पड़ता है. इस बार प्रदोष व्रत सोमवार के दिन पड़ रहा है. इसलिए इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जा रहा है. यह व्रत रखने से चंद्र दोष दूर होता है, मानसिक शांति मिलती है, और संतान सुख की प्राप्ति होती है।
पंचांग के अनुसार, सोम प्रदोष व्रत के लिए त्रयोदशी तिथि 23 जून दिन, सोमवार को सुबह 07 बजकर 37 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 24 जून दिन मंगलवार को सुबह 09 बजकर 33 मिनट पर खत्म होगी. प्रदोष काल में पूजा का समय शाम 07 बजकर 37 मिनट से रात 09 बजकर 33 मिनट तक रहेगा. प्रदोष काल सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले शुरू होता है और सूर्यास्त के बाद लगभग 45 मिनट तक रहता है. यह वह समय है जब शिव और पार्वती अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में होते हैं।
सोम प्रदोष व्रत की पूजा विधि
- प्रदोष Som Pradosh व्रत के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा प्रदोष काल में ही विशेष रूप से फलदायी होती है।
- सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें. हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प लें कि आप पूरे दिन व्रत रखकर प्रदोष काल में शिव-पार्वती की पूजा करेंगे।
- घर के मंदिर में या शिव मंदिर में शिवलिंग पर जल चढ़ाएं. बेलपत्र, धतूरा, अक्षत (चावल), धूप-दीप आदि से सामान्य पूजा करें।
- पूरे दिन निराहार (बिना कुछ खाए-पिए) रहें. यदि संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं, जिसमें अनाज और नमक का सेवन वर्जित होता है।
- पूरे दिन मन में शिव-पार्वती का स्मरण करते रहें. सूर्यास्त से ठीक पहले या प्रदोष काल के प्रारंभ में एक बार फिर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल को साफ करके गंगाजल से शुद्ध करें. उत्तर-पूर्व दिशा में मुंह करके बैठें. यदि संभव हो, तो गाय के गोबर से मंडप बनाएं और पांच रंगों से रंगोली सजाएं।
- एक चौकी पर भगवान शिव, माता पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें. यदि शिवलिंग है, तो उस पर पूजा करें।
- शिवलिंग का पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल) से अभिषेक करें. ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप करते रहें।
- भगवान शिव को बेलपत्र, धतूरा, भांग, सफेद फूल (विशेषकर मदार के फूल), शमी पत्र, चंदन और भस्म अर्पित करें. माता पार्वती को लाल वस्त्र, लाल फूल, सिंदूर, बिंदी और सुहाग की अन्य सामग्रियां अर्पित करें।
व्रत का पारण (अगले दिन)
प्रदोष Som Pradosh व्रत का पारण द्वादशी तिथि (24 जून) को सूर्योदय के बाद और प्रदोष काल के बाहर करें. सुबह स्नान करके भगवान की पूजा करें. किसी ब्राह्मण को भोजन कराएं या दान-दक्षिणा दें. इसके बाद स्वयं सात्विक भोजन ग्रहण करके व्रत खोलें।
सोम प्रदोष व्रत का महत्व
सोमवार के दिन पड़ने वाला प्रदोष व्रत चंद्र देव को समर्पित है, क्योंकि सोम प्रदोष व्रत करने से कुंडली में चंद्रमा की स्थिति मजबूत होती है और चंद्र दोष से मुक्ति मिलती है, जिससे मानसिक शांति और स्थिरता आती है. यह व्रत संतान प्राप्ति के लिए बहुत शुभ माना जाता है. सच्चे मन से यह व्रत करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और अच्छा स्वास्थ्य बना रहता है. यह व्रत सभी प्रकार के रोगों और कष्टों को दूर करने वाला माना जाता है. यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद को प्राप्त करने का एक अद्भुत अवसर है।