भारतीय राजनीति का संवेदनशील विषय रहा है जातीय जनगणना
जातीय जनगणना लम्बे समय से भारतीय राजनीति का संवेदनशील और विवादास्पद विषय रहा है। विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल (राजद), समाजवादी पार्टी (सपा) सहित अन्य क्षेत्रीय दल वर्षों से जातीय जनगणना की मांग करते आ रहे थे। इन दलों का तर्क था कि जनसंख्या में विभिन्न जातियों का वास्तविक अनुपात सामने आए बिना सामाजिक न्याय और संसाधनों का समान वितरण संभव नहीं है लेकिन जब नरेंद्र मोदी सरकार ने अप्रत्याशित रूप से जातीय जनगणना की घोषणा की तो यह न केवल विपक्ष को चौंकाने वाला कदम था, बल्कि उनके एक बड़े राजनीतिक मुद्दे को भी कमजोर करने वाला सिद्ध हुआ। देश में सिर्फ एक बार 1931 में जातीय जनगणना हुई थी तब अंग्रेजी हुकूमत थी।
जातीय जनगणना को लेकर कांग्रेस पर हमलावर है बीजेपी
बीजेपी जातीय जनगणना को लेकर सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के प्रति कुछ ज्यादा ही हमलावर है। कांग्रेस को याद दिलाया जा रहा है कि किस तरह से उसके पूर्व नेता और प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी जातीय जनगणना के खिलाफ रहते थे। बीजेपी कह रही है कि नरसिम्हा राव और मनमोहन सरकार ने भी कभी जातीय जनगणना के बारे में नहीं सोचा। बहरहाल मोदी सरकार ने जातीय जनगणना कराये जाने की घोषणा तो कर दी है लेकिन अभी इस पर काम इतनी जल्दी नहीं शुरू हो पायेगा। बताते हैं कि जनगणना के साथ जाति गणना की प्रक्रिया 2027 तक शुरू हो पायेगी। तब यूपी विधान सभा चुनाव सिर पर होंगे। जनगणना में देरी इसलिये होगी क्योंकि इसकी प्रक्रिया तय करने से पूर्व कई तकनीकी बिन्दुओं को भी सुलझाना होगा।
विपक्ष के लिए एक मजबूत चुनावी हथियार रहा है जातीय जनगणना
विपक्ष के लिए जातीय जनगणना एक मजबूत चुनावी हथियार रहा है। खासकर उत्तर भारत में। बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले दलों ने इसे केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ एक नैरेटिव के रूप में इस्तेमाल किया लेकिन मोदी सरकार द्वारा इस मांग को स्वीकार कर लेना विपक्ष के नैरेटिव को छीन लेने जैसा है। इससे विपक्ष की वर्षों की राजनीति और आंदोलन का केंद्रीय मुद्दा अप्रासंगिक हो गया। जातीय आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की संख्या कितनी है। इस जानकारी का उपयोग आरक्षण, सरकारी योजनाओं और प्रतिनिधित्व की नीतियों में किया जा सकता है।
भाजपा सवर्ण हितैषी
विपक्ष इस मांग के ज़रिए यह संदेश देता रहा है कि भाजपा सवर्ण हितैषी है और सामाजिक न्याय के खिलाफ है लेकिन जैसे ही केंद्र ने इस मांग को स्वीकारा। भाजपा ने यह संकेत देने की कोशिश की कि वह भी पिछड़ों और वंचितों के हितों के प्रति संवेदनशील है। इससे भाजपा की ‘सामाजिक समरसता’ की छवि को बल मिला।
कई राज्यों में निकट हैं चुनाव
जातीय जनगणना की घोषणा ऐसे समय में आई जब कई राज्यों में चुनाव निकट हैं और 2024 का लोकसभा चुनाव भी हाल ही में हुआ है या चर्चा में है। यह कदम पिछड़ा वर्ग, दलित और आदिवासी वोटरों को सीधे प्रभावित करता है। विपक्ष ने आशा की थी कि भाजपा इस मुद्दे पर पीछे हटेगी जिससे उन्हें पिछड़े वर्गों को अपनी ओर आकर्षित करने का मौका मिलेगा लेकिन भाजपा के इस कदम से अब यह वर्ग भ्रमित हो सकता है कि किसे समर्थन दिया जाय।
मिश्रित रही विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया
घोषणा के तुरंत बाद विपक्षी दलों की प्रतिक्रिया मिश्रित रही। कुछ नेताओं ने इसे अपनी जीत बताने की कोशिश की जबकि कुछ ने इसे देर से उठाया गया राजनीतिक कदम कहा लेकिन यथार्थ यह है कि यह कदम भाजपा को सामाजिक न्याय के एजेंडे में हिस्सेदार बना देता है जिससे विपक्ष की विशिष्टता समाप्त हो जाती है। मोदी सरकार ने जातीय जनगणना की घोषणा केवल सामाजिक हितों को ध्यान में रखते हुए नहीं की, बल्कि इसके पीछे गहरी राजनीतिक रणनीति भी रही। भाजपा ने यह संदेश दिया कि वह सभी वर्गों की पार्टी है। साथ ही यह कदम संघ के पुराने विचारों से एक प्रकार की दूरी भी दर्शाता है जहां जातीय आधार पर समाज को विभाजित करने के विचारों से बचा जाता रहा है। यह भाजपा के आधुनिक और समावेशी चेहरे को आगे लाता है।
विपक्ष के पास स्पष्ट रणनीति नहीं
अब विपक्ष के पास यह स्पष्ट रणनीति नहीं रह गई कि वे किस आधार पर भाजपा का विरोध करें। यदि वे इस कदम का स्वागत करते हैं तो भाजपा को इसका श्रेय मिल जाता है। यदि वे इसका विरोध करते हैं तो वे जनभावनाओं के विरुद्ध खड़े दिखाई देते हैं। इससे उनकी विश्वसनीयता और नेतृत्व क्षमता पर प्रश्न उठने लगे हैं। विपक्ष को अब नए मुद्दों की तलाश करनी पड़ेगी जो भाजपा को असहज कर सके। जातीय जनगणना की घोषणा मोदी सरकार का केवल सामाजिक नहीं, बल्कि एक गहरा राजनीतिक कदम है।
वर्षों पुरानी राजनीति को कर दिया अप्रासंगिक
इसने विपक्ष की वर्षों पुरानी राजनीति को अप्रासंगिक कर दिया है और भाजपा को नए सामाजिक वर्गों के बीच स्वीकार्यता दिलाने की दिशा में आगे बढ़ाया है। खैर, भविष्य में यह देखना रोचक होगा कि आंकड़ों के आने के बाद भाजपा और विपक्ष किस प्रकार अपनी रणनीति गढ़ते हैं लेकिन फिलहाल यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार ने विपक्ष के सबसे मजबूत तीर को उसी की तुक में इस्तेमाल कर एक बड़ा झटका दिया है।

- अजय कुमार, लखनऊ
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