Pahalgam: में मारे गए लोगों को मिलेगा शहीद का दर्जा? राहुल गांधी ने की मांग,

राहुल गांधी

राहुल गांधी की सोशल मीडिया पोस्ट चर्चा में है। उन्होंने अपनी पोस्ट में पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए लोगों को शहीद का दर्जा देने की मांग की है। वहीं, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में एक जनयाचिका दायर कर भी मारे गए पर्यटकों को शहीद घोषित करने की मांग की गई है।

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पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में मारे गए पर्यटकों को लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने शहीद का दर्जा देने की मांग की है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संबोधित एक पोस्ट में राहुल गांधी ने कहा कि पहलगाम हमले में मृत लोगों के परिवारों के साथ वह खड़े हैं। उनकी इस मांग का समर्थन भी करते हैं कि मारे गए पर्यटकों को शहीद का दर्जा मिले। वहीं, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में एक जनयाचिका दायर कर भी मारे गए पर्यटकों को शहीद घोषित करने की मांग की गई है।

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राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर की पोस्ट

राहुल गांधी ने एक्स पर पोस्ट की है, पहलगाम हमले में मारे गए लोगों के परिवारों के दुख में, शहीद के दर्जे की उनकी मांग में, मैं साथ खड़ा हूं। प्रधानमंत्री से आग्रह है कि वो इस त्रासदी में जान गंवाने वालों को यह सम्मान देकर उनके परिवारों की भावना का आदर करें। इससे पहले रायबरेली से सांसद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पहलगाम हमले में जान गंवाने वाले कानपुर के शुभम द्विवेदी के घर जाकर उनके परिवार के सदस्यों से मुलाकात की थी। तब भी कहा था कि वह मृतक के लिए शहीद का दर्जा चाहते हैं।

26 पर्यटकों की चली गई थी जान

  • दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित पहलगाम के पर्यटक स्थल बैसरन में 22 अप्रैल को आतंकवादियों ने हमला कर दिया था।
  • महिलाओं और बच्चों से पुरुषों को अलग कर धर्म पूछ कर उनको गोली मार दी गई थी।
  • इसमें एक नेपाली नागरिक और एक कश्मीरी समेत 26 लोगों की जान गई थी।
  • कई अन्य घायल भी हुए थे।
  • इन्हीं पर्यटकों को शहीद का दर्जा देने की मांग लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता ने की थी।

सेनाओं के जवानों को ही दिया जाता है दर्जा

  • जहां तक शहीद का दर्जा देने की मांग है तो आमतौर पर देश की सुरक्षा में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले अफसरों-जवानों को शहीद कहा जाता है।
  • आम बोलचाल की भाषा में पुलिस, अर्धसैनिक बल और सैन्य बलों के सभी जवानों को शहीद कहा जाता है लेकिन देश में अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले केवल सेना के जवानों को शहीद का दर्जा मिलता है।
  • किसी राज्य के पुलिसकर्मी आतंकवादी हमले या अन्य किसी ऑपरेशन के दौरान अपनी जान गंवाते हैं, तो उनको शहीद का दर्जा नहीं दिया जाता है।
  • इसी तरह से सेना में अग्निवीर जवानों को भी शहीद का दर्जा नहीं दिया जाता है, भले ही उनकी जान किसी ऑपरेशन, सैन्य दुर्घटना या आतंकवादी हमले में गई हो।
  • ऐसे मामलों में अग्निवीर जवानों को केवल पहले से तय राशि और बीमा राशि ही सरकार की तरफ से मिलती है।

शहीदों के परिजनों को मिलती हैं कई तरह की सुविधाएं

  • जिन जवानों को कागजों पर शहीद का दर्जा भारत सरकार की ओर से दिया जाता है, उनके परिवारों को कई तरह की सुविधाएं भी दी हैं।
  • तीनों सेनाओं के जवानों में से किसी को सरकार की ओर से शहीद का दर्जा दिया जाता है, तो उसके परिवार को जमीन या मकान, पेट्रोल पंप अथवा गैस एजेंसी, शहीद की पत्नी को सेवा काल का पूरा वेतन, शहीद के परिजनों को रेलवे और हवाई किराए में 50 फीसदी तक की छूट आदि जैसी सुविधाएं दी जाती हैं।
  • इसके अलावा राज्य सरकार की ओर से शहीदों के आश्रितों को आर्थिक मदद दी जाती है।
  • परिवार के एक निकटतम व्यक्ति को सरकारी नौकरी समेत और सुविधाएं भी मिलती हैं।

शहीद के दर्जे को लेकर क्या कहती है सरकार

  • राज्यसभा के तत्कालीन सांसद किरणमय नंदा ने साल 2013 में शहीद के दर्जे को लेकर सरकार से पूछा भी था।
  • इसके जवाब में सरकार की ओर से बताया गया था कि सरकार किसी भी जवान के साथ कोई भेदभाव नहीं करती है।
  • इसमें यह भी माना गया था कि रक्षा मंत्रालय के पास वास्तव में शहीद शब्द की कहीं कोई सटीक परिभाषा भी नहीं है।

RTI कार्यकर्ता को सरकार ने दिया था यह जवाब

दिल्ली के एक आरटीआई एक्टिविस्ट गोपाल प्रसाद ने आरटीआई एक्ट के तहत केंद्र सरकार से पूछा था कि सरकार किसे शहीद मानती है। इस पर जवाब दिया गया था कि केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से भी शहीद को कहीं परिभाषित ही नहीं किया है। ऐसे ही भारत सरकार ने दिसंबर 2017 में केंद्रीय सूचना आयोग को सूचित किया था कि रक्षा मंत्रालय की ओर से किसी भी जवान को शहीद कहने के लिए कोई भी नोटिफिकेशन जारी नहीं किया है।

ऐसे में जहां तक पहलगाम हमले में मारे गए पर्यटकों को शहीद का दर्जा देने की बात है तो पारंपरिक या कानूनी रूप से इसकी संभावना कम ही है। यह और बात है कि सरकार की ओर से विशेष प्रावधान कर उनके परिजनों को वे सारी सुविधाएं प्रदान की जाएं जो आमतौर पर अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले जवानों को दी जाती हैं।

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