Pitru Dosh: पितृ दोष (Ancestral Curse) जन्म कुंडली में ऐसा ग्रह योग होता है जो पूर्वजों के अस्थिर या अतृप्त आत्मा के कारण बनता है। इसे शास्त्रों में कर्मों का फल माना गया है जो पिछले जन्मों में माता-पिता या बुजुर्गों की सेवा न करने पर बनता है।
पितृ दोष कैसे बनता है?
- जब पंचम भाव या नवम भाव में राहु-केतु स्थित हों।
- पंचम या नवम भाव के स्वामी नीच राशि में हों या द्वादश, अष्टम या षष्ठम भाव में हों।
- सूर्य जो पिता का कारक ग्रह है, यदि पीड़ित हो।
- बृहस्पति के साथ राहु-केतु की युति हो।
Pitru Dosh के लक्षण
- भाग्य का साथ न देना, 99% कार्य सफल होते-होते रुक जाना।
- संतान संबंधी परेशानियां – गर्भ न टिकना, संतान की मृत्यु या अपंगता।
- पिता से वैचारिक मतभेद या उनका दुखी होना।
- बार-बार धोखा मिलना, अचानक हानि।
- तंत्र-मंत्र या बुरी शक्तियों का प्रभाव।

पितृ दोष से मुक्ति के उपाय
इस पूजा को खासकर त्र्यंबकेश्वर (Maharashtra), गया (Bihar), पुष्कर (Rajasthan) व हरिद्वार जैसे पवित्र तीर्थ स्थलों पर करवाया जाता है। यह उन अज्ञात पितरों की आत्मा की शांति के लिए की जाती है जिनकी मौत या विवरण ज्ञात नहीं होता।
पितृ पक्ष में पूजा करना
पितृ दोष की पूजा कृष्ण पक्ष और खासकर पितृ अमावस्या के दिन करना अधिक मंगल माना गया है।
स्त्रियों के लिए नियम
यदि किसी कन्या की कुंडली में पितृ दोष हो, तो विवाह के बाद पति के साथ पूजा करवाई जाती है। विवाह पूर्व कन्या विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ कर सकती है।
पाठ और मंत्र
जो लोग किसी कारणवश पूजा न करवा सकें, वे निम्न स्तोत्रों का नियमित पाठ करें:
- विष्णु सहस्त्रनाम
- गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र
- आदित्य हृदय स्तोत्र
इनका पाठ पितृ दोष से राहत देने में मददगार होता है।