देश छोड़ने की फिराक में
काठमांडू: नेपाल में छात्रों के भारी विरोध प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली(PM Oli) की सरकार खतरे में है। नेपाली मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पीएम ओली(PM Oli) इलाज के बहाने दुबई भाग सकते हैं। यह खबर ऐसे समय में आई है जब पूरे नेपाल में छात्रों के विरोध प्रदर्शन और हिंसा जारी है। सरकार ने सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया है, लेकिन गुस्साए प्रदर्शनकारियों(Protesters) ने अब प्रधानमंत्री के इस्तीफे की मांग कर दी है।
सरकार के मंत्रियों का सामूहिक इस्तीफा और बिगड़ते हालात
इस अभूतपूर्व जनांदोलन के दबाव में आकर गृहमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और कृषि मंत्री समेत कुल 10 मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया है, जिससे ओली सरकार की स्थिति और भी कमजोर हो गई है। प्रदर्शनकारियों का आक्रोश इतना बढ़ गया है कि उन्होंने नेपाल(Nepal) के राष्ट्रपति के निजी आवास को आग लगा दी है। वहीं, प्रधानमंत्री(PM Oli) के करीबी सूत्रों के अनुसार, लोगों के गुस्से से बचने के लिए कई नेता देश छोड़कर भागने की योजना बना रहे हैं। इसके लिए त्रिभुवन अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे (टीआईए) को भी हाई अलर्ट पर रखा गया है, ताकि वीआईपी यातायात को प्रबंधित किया जा सके।
आंदोलन का व्यापक स्वरूप और राजनीतिक अस्थिरता

शुरुआत में सोशल मीडिया प्रतिबंध के विरोध में शुरू हुआ यह आंदोलन अब भ्रष्टाचार, कुप्रशासन और लोकतांत्रिक अधिकारों के दमन के खिलाफ एक व्यापक नागरिक असंतोष में बदल गया है। प्रदर्शनकारियों ने न केवल सरकारी(PM Oli) संपत्तियों को निशाना बनाया है, बल्कि सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के आवासों पर भी हमला किया है। पूर्व उप-प्रधानमंत्री रघुवीर महासेठ के घर पर भी पथराव हुआ है, और नेपाल कांग्रेस अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा के आवास को भी जला दिया गया है। यह आंदोलन नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता को उजागर करता है, जहां लोकतंत्र लागू होने के बाद से कोई भी प्रधानमंत्री अपना पूरा कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया है।
नेपाल में इस आंदोलन के दौरान अब तक कितना नुकसान हुआ है?
इस आंदोलन के दौरान अब तक कम से कम 19 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 300 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति के निजी आवास, नेपाल कांग्रेस अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा के आवास और अन्य सरकारी संपत्तियों को भी आग के हवाले कर दिया है।
यह आंदोलन केवल सोशल मीडिया प्रतिबंध तक ही क्यों सीमित नहीं रहा?
आंदोलन शुरुआत में सोशल मीडिया प्रतिबंध के खिलाफ शुरू हुआ था, लेकिन पुलिस की हिंसक कार्रवाई और 19 छात्रों की मौत के बाद इसने एक व्यापक रूप ले लिया। अब यह आंदोलन सिर्फ सोशल मीडिया बैन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश में चल रहे भ्रष्टाचार, कुप्रशासन और लोकतांत्रिक अधिकारों के दमन के खिलाफ एक बड़े नागरिक असंतोष का प्रतीक बन गया है।
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