Covid के बाद बाजार में सबसे बड़ी तबाही: सेंसेक्स 3914 और निफ्टी 1146 अंक घटे, रिलायंस-अडाणी सभी लहूलुहान
जब भी Covid-19 का असर आर्थिक दुनिया पर देखने को मिला, तो बाजार में उथल-पुथल हो गई। हालांकि, अब जब कोविड के बाद शेयर बाजार में एक और बड़ा झटका आया है, तो निवेशकों की चिंता दोगुनी हो गई है। हाल ही में सेंसेक्स 3914 और निफ्टी 1146 अंक घटने के बाद, रिलायंस-अडाणी समेत कई बड़ी कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट देखने को मिली है। आइए, इस घटना के पीछे की वजह, इसके प्रभाव और आगे की संभावनाओं पर एक नज़र डालते हैं।

Covid के बाद का आर्थिक परिदृश्य
पहले से ही Covid-19 महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को हिला कर रख दिया था। हालांकि, धीरे-धीरे जब देश में आर्थिक गतिविधियाँ फिर से शुरू हुईं, तो उम्मीद थी कि बाजार में स्थिरता आएगी। परंतु, हाल ही में सामने आई इस बड़ी गिरावट ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या Covid के बाद की रिकवरी पूरी तरह से हो गई है या फिर से मंदी का दौर शुरू हो गया है।
- Covid महामारी के बाद, कई उद्योगों में मंदी आई थी, परंतु सरकार ने पैकेज और आर्थिक नीतियों के माध्यम से रिकवरी का प्रयास किया।
- फिर भी, बाजार में अस्थिरता बनी हुई है, क्योंकि निवेशकों का विश्वास अभी भी कमजोर है।
- इस गिरावट ने न केवल बड़े निवेशकों बल्कि आम निवेशकों के मन में भी भय उत्पन्न कर दिया है।
सेंसेक्स और निफ्टी में भारी गिरावट
जब हम सेंसेक्स और निफ्टी की बात करते हैं, तो यह दोनों ही भारतीय अर्थव्यवस्था का मापक सूचकांक हैं।
- सेंसेक्स में 3914 अंक की गिरावट और निफ्टी में 1146 अंक की गिरावट ने पूरे बाजार में हड़कंप मचा दिया है।
- यह गिरावट इस बात का संकेत है कि निवेशकों का उत्साह धीरे-धीरे कम हो रहा है और बाजार में बेचैनी छा गई है।
- इसके पीछे कई कारक हो सकते हैं, जैसे कि वैश्विक मुद्रास्फीति, घरेलू राजनीतिक अस्थिरता, और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अनिश्चितता।
रिलायंस-अडाणी सहित बड़े खिलाड़ियों पर असर
अक्सर देखा जाता है कि जब बाजार में गिरावट आती है, तो सबसे पहले बड़े नामों के शेयर प्रभावित होते हैं।
- रिलायंस और अडाणी जैसी कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट हुई है।
- इन कंपनियों का भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है, इसलिए इनके शेयरों में गिरावट से पूरे बाजार में भय का माहौल बन जाता है।
- निवेशकों के अनुसार, ये कंपनियाँ लंबे समय से मजबूत रही हैं, परंतु मौजूदा बाजार के हालात ने उन्हें भी झटका दिया है।
मुख्य कारण और प्रभाव
अब सवाल यह है कि इस बड़ी गिरावट के पीछे मुख्य कारण क्या हैं? आइए, कुछ प्रमुख बिंदुओं पर गौर करें:
- वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता:
- अंतरराष्ट्रीय बाजारों में मंदी और मुद्रास्फीति की बढ़ती दर ने भारतीय बाजार पर भी असर डाला है।
- अमेरिकी, यूरोपीय और एशियाई बाजारों की अनिश्चितताओं ने भारतीय निवेशकों का विश्वास कम किया है।
- घरेलू राजनीतिक और आर्थिक मुद्दे:
- सरकार द्वारा आर्थिक नीतियों में अचानक बदलाव, कर प्रणाली में संशोधन, और राजनीतिक अस्थिरता ने निवेशकों में संदेह पैदा किया है।
- वित्तीय मंत्रालय के नए घोषणाओं का भी बाजार पर मिश्रित असर पड़ा है।
- बाजार में बेचैनी और पल-पल की ट्रेडिंग:
- फियर सेलिंग (डर के कारण बेचने) की स्थिति ने बाजार में तेजी से गिरावट लाई है।
- निवेशक अपने फंड्स निकालते दिख रहे हैं, जिससे मार्केट में तरलता की कमी हो गई है।
- अंतरराष्ट्रीय ट्रेड और कूटनीति:
- वैश्विक व्यापार में उठ रहे विवाद और नई टैरिफ़ नीतियाँ भी बाजार को प्रभावित कर रही हैं।
- अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक लड़ाई का असर भारतीय कंपनियों पर भी पड़ रहा है।

आगे का रास्ता और संभावित समाधान
जबकि बाजार में इस तरह की गिरावट चिंताजनक है, विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक संक्षिप्त मंदी हो सकती है। निम्नलिखित बिंदु इस दिशा में सहायक हो सकते हैं:
- सरकार की आर्थिक नीतियाँ:
सरकार ने विभिन्न पैकेज और नीतियों के माध्यम से बाजार को स्थिर करने का प्रयास किया है। यदि ये पैकेज प्रभावी होते हैं, तो निवेशकों का विश्वास फिर से बढ़ सकता है। - वैश्विक बाजार की रिकवरी:
जैसे ही वैश्विक बाजारों में स्थिरता आती है, भारतीय बाजार पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। निवेशकों को धैर्य रखने की जरूरत है। - मध्यस्थता और सुधार:
विशेषज्ञों का सुझाव है कि सरकार को वित्तीय सुधारों और व्यापारिक नीतियों में स्थिरता लानी चाहिए। इससे बाजार में तरलता बढ़ेगी और डर कम होगा।
Covid के बाद के आर्थिक उथल-पुथल ने भारतीय शेयर बाजार को एक बार फिर चुनौती दी है। सेंसेक्स में 3914 और निफ्टी में 1146 अंक की गिरावट ने न केवल बड़े निवेशकों को, बल्कि आम निवेशकों को भी चिंतित कर दिया है। जबकि वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता, घरेलू राजनीतिक मुद्दे, और व्यापारिक विवादों ने इस गिरावट में योगदान दिया है, विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति अस्थायी हो सकती है।
सरकार द्वारा उठाए गए कदम और सुधार की दिशा में लिए गए प्रयास, यदि सही तरीके से लागू किए जाएं, तो बाजार में फिर से स्थिरता आ सकती है। हालांकि, निवेशकों को संयम बरतने और दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी जा रही है।