भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 21 मई 1991 को एक आत्मघाती हमले में हत्या कर दी गई थी। हालांकि, यह सवाल उठता है कि जिस LTTE को इंदिरा गांधी का समर्थन प्राप्त था, वही संगठन आखिर क्यों राजीव गांधी की हत्या के पीछे था। आइए जानते हैं इसके कारण।
राजीव गांधी की पुण्यतिथि पर, आज 21 मई को हम आपको बताएंगे कि कैसे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हुई थी। उनकी कहानी प्रधानमंत्री बनने से शुरू होती है।
इंदिरा गांधी की हत्या उनके अंगरक्षकों द्वारा किए जाने के बाद, राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उन्हें शपथ दिलाई और वह मात्र 40 वर्ष की आयु में भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने।
उनका दृष्टिकोण आधुनिक था, और उन्होंने भारत को भ्रष्टाचारमुक्त बनाने की दिशा में कई कदम उठाए थे।
“LTTE की स्थापना: इतिहास और कारण”
1976 में तमिल अलगाववादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) की स्थापना वेलुपिल्लई प्रभाकरन ने की। इसका मुख्य उद्देश्य श्रीलंका में एक अलग तमिल राज्य की स्थापना करना और तमिल समुदाय पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ संघर्ष करना था।
एलटीटीई को भारत सरकार से समर्थन प्राप्त था और भारत में इसके प्रति सहानुभूति भी थी। इंदिरा गांधी के शासनकाल में भारत की खुफिया एजेंसी ने कुछ तमिल गुटों को प्रशिक्षण और सहायता भी प्रदान की थी।
“श्रीलंका में पीस कीपिंग फोर्स की तैनाती: भारत का कदम”
1987 में भारत और श्रीलंका सरकार के बीच एक समझौता हुआ, जिसके बाद राजीव गांधी ने भारतीय शांति सेना (Indian Peace Keeping Force) को श्रीलंका भेजा, ताकि वहां चल रहे संघर्ष को समाप्त किया जा सके और एलटीटीई को निरस्त्र किया जा सके। शुरूआत में एलटीटीई ने भारतीय शांति सेना का स्वागत किया, लेकिन समय के साथ स्थिति बदल गई।
एलटीटीई को भारत का हस्तक्षेप अब बुरा लगने लगा, और उन्होंने भारतीय सेना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
इसके बाद एलटीटीई को इस संघर्ष का खामियाजा भी भुगतना पड़ा।
“LTTE की राजीव गांधी से नाराजगी: संघर्ष और कारण”
श्रीलंका में शांति सेना की तैनाती के बाद एलटीटीई राजीव गांधी से नाराज हो गया, जिससे तनाव बढ़ गया था।
एलटीटीई राजीव गांधी को नापसंद करता था। 1989 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई, लेकिन विपक्ष में बनी रही।
1991 में राजीव गांधी फिर से चुनाव प्रचार के लिए मैदान में उतरे।
राजीव गांधी ने इंटरव्यू में कहा था कि यदि वे सत्ता में आए, तो शांति सेना श्रीलंका भेजेंगे।
एलटीटीई को पता था कि राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने, तो शांति सेना को श्रीलंका भेज देंगे।
“राजीव गांधी की हत्या की साजिश”
एलटीटीई ने राजीव गांधी की हत्या की साजिश बड़े स्तर पर तैयार की।
21 मई 1991 को श्रीपेरंबुदूर में रैली के दौरान आत्मघाती हमलावर ने राजीव गांधी के पास जाकर विस्फोट किया।
इस विस्फोट में राजीव गांधी समेत 14 लोगों की जान चली गई। थेनमोझी एलटीटीई की सदस्य थी।
चेतावनी के बावजूद राजीव गांधी 21 मई 1991 को रैली में गए, जहां विस्फोट में उनकी हत्या हो गई।