इस प्राकृतिक आपदा का सबसे ज्यादा कहर किसानों पर टूटा है। उनके 10 हजार से ज्यादा मवेशी आपदा की भेंट चढ़ गए हैं। 80 फीसदी फसलें बर्बाद हो गई हैं। कौड़ी-कौड़ी जोड़कर बनाए गए उनके आशियाने टूट गए हैं।
रामबन जिले में प्राकृतिक आपदा ने भयावह तबाही मचाई है। भारी बारिश-ओलावृष्टि और भूस्खलन से 80 फीसदी से ज्यादा फसलें बर्बाद हुई हैं। 10 हजार से ज्यादा मवेशियों की मौत हो गई है। 85 घर और 45 से ज्यादा दुकानें ध्वस्त हुई हैं। जिले की बागना पंचायत में लगभग 18-20 किलोमीटर की परिधि में फैली इस तबाही ने संचार व्यवस्था को पूरी तरह से ठप कर दिया है। 85 में से 28 फीडर प्रभावित हुए हैं। 1762 ट्रांसफार्मर में से 945 फुंकने के कारण बिजली सप्लाई बाधित हो गई है, जिससे लोगों का जीवन-यापन और भी मुश्किल हो गया है।
हाँ, रामबन जिले में जो कुछ हुआ है, वो सचमुच बहुत ही भयावह और दर्दनाक है। इस आपदा ने न सिर्फ लोगों की आजीविका पर गहरा असर डाला है, बल्कि उनकी ज़िंदगी का ढांचा ही हिला दिया है।
आपदा का प्रभाव – एक नजर में:
कृषि और पशुपालन पर असर:
- 80% से अधिक फसलें बर्बाद — प्याज, आलू, मक्का और सब्जियां तबाह।
- 10,000+ मवेशियों की मौत — इससे किसानों और ग्रामीणों को दोहरा नुकसान हुआ है।
- संपत्ति का विनाश:
- 85 घर और 45+ दुकानें पूरी तरह ध्वस्त — सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं।
- बागना पंचायत सबसे ज्यादा प्रभावित — 18-20 किमी क्षेत्र पूरी तरह तबाह।
- बुनियादी ढांचा चरमरा गया:
- संचार व्यवस्था ठप — 28 फीडर में से अधिकांश प्रभावित।
- 945 ट्रांसफॉर्मर फुंके — बिजली आपूर्ति बुरी तरह बाधित, जीवनयापन मुश्किल।
हालात की गंभीरता:
यह सिर्फ एक आपदा नहीं, बल्कि एक मानवीय संकट बन गया है। बिजली, संचार, आजीविका—सबकुछ एक साथ टूट गया है। इस तरह की घटनाएं हमें यह याद दिलाती हैं कि प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की तैयारी कितनी जरूरी है।
आगे क्या किया जा सकता है?
सरकारी मुआवजा और पुनर्वास नीति तेज़ी से लागू हो।
एनडीआरएफ और राज्य आपदा बल की सक्रियता और तेज़ की जाए।
स्थानीय NGOs और नागरिक समाज को राहत कार्य में जोड़ा जाए।
बिजली और संचार की व्यवस्था प्राथमिकता पर बहाल की जाए।
अगर आप चाहें तो मैं स्थानीय राहत कोषों या दान के विकल्प भी तलाश सकता हूँ जहाँ लोग सीधे सहायता भेज सकते हैं। क्या आप उसमें रुचि रखते हैं?