उज्जैन की शिप्रा में बहता है मोक्ष का रहस्य
धार्मिक नगरी उज्जैन मे मोक्ष दायनी मां शिप्रा प्रभावित होती है. जिसमे सैकड़ो भक्त आस्था की डुबकी लगाने उज्जैन पहुंचते है. ऐसे ही हम अगर इस नदी की उतपति की बात करे. तो पुराणों मे इस नदी का उल्लेख मिलता है।
शुभम मरमट, उज्जैन: बाबा महाकाल की पावन नगरी उज्जैन सिर्फ एक तीर्थ नहीं, बल्कि मोक्ष की ओर ले जाने वाला आध्यात्मिक द्वार है. यहां बहने वाली मां शिप्रा नदी को मोक्षदायिनी कहा जाता है, और इसके तट पर कुंभ मेले में करोड़ों श्रद्धालु पुण्य की डुबकी लगाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस नदी की उत्पत्ति किसी पर्वत, बारिश या झरने से नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु के रक्त से हुई है?
शिव और विष्णु के संवाद से फूटी शिप्रा की धार
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय भगवान शिव ब्रह्मकपाल लेकर भगवान विष्णु से भिक्षा मांगने गए. जब भगवान विष्णु ने अंगुली दिखाकर भिक्षा दी, तो इसे अशिष्टता मानकर शिवजी क्रोधित हो गए और अपने त्रिशूल से उनकी अंगुली पर प्रहार कर दिया. उस प्रहार से बह निकली रक्त की धारा, विष्णुलोक से धरती पर आकर शिप्रा नदी बन गई. यही वजह है कि शिप्रा को ‘दिव्य रक्त धारा’ भी कहा जाता है।
रामघाट: जहां श्रीराम ने किया पिता दशरथ का श्राद्ध
स्कंद पुराण में वर्णन है कि वनवास काल में भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता उज्जैन पहुंचे थे. यहां उन्होंने शिप्रा तट पर अपने पिता दशरथ का तर्पण और श्राद्ध किया. यही वजह है कि रामघाट को शिप्रा का सबसे पवित्र घाट माना जाता है. आज भी लाखों श्रद्धालु इसी तट पर तर्पण, पिंडदान और स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं।
महाकाल की गंगा: शिप्रा की धार्मिक गरिमा
पंडित आनंद भारद्वाज बताते हैं कि शिप्रा को ‘महाकाल की गंगा’ कहा जाता है. इसकी जलधारा उत्तरवाहिनी है, जो मोक्षदायिनी बनाती है. श्राद्ध पक्ष ही नहीं, आम दिनों में भी हजारों लोग यहां कर्मकांड के लिए पहुंचते हैं।