बाढ़ और तबाही का मंजर
उत्तर भारत में इस साल मानसून ने कहर बरपाया है। हिमालय (Himalay) से निकलने वाली नदियां, जो जीवनदायिनी मानी जाती हैं, इन दिनों तबाही का पर्याय बन गई हैं। गंगा, यमुना, सतलुज, झेलम, चिनाब और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों ने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और उत्तर प्रदेश में भारी बाढ़ और भूस्खलन से जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है।
भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, अगस्त 2025 में 72 घंटों में 300-350 मिमी बारिश दर्ज की गई, जो सामान्य से तीन गुना अधिक है। यह पिछले चार दशकों की सबसे भयावह बाढ़ मानी जा रही है, जिसमें 400 से अधिक लोगों की जान गई और 30,000 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान हुआ।
हिमालयी नदियां बरपा रहीं कहर
हिमालयी नदियां, जैसे गंगा और यमुना, ग्लेशियरों और मानसून की बारिश से पोषित होती हैं। भारी वर्षा और ग्लेशियरों के पिघलने से इनका जलस्तर खतरनाक स्तर तक पहुंच गया। उत्तराखंड में यमुना का जलस्तर खतरे के निशान को पार कर गया, जिससे उत्तरकाशी और चमोली में कई गांव जलमग्न हो गए। चमोली के नीति घाटी में तमक नाला पुल बह गया, जिससे दर्जनों गांवों का संपर्क टूट गया।
जम्मू-कश्मीर में झेलम और चिनाब नदियों ने राजौरी और पूंछ में पुल तोड़ दिए, जिससे हजारों लोग अलग-थलग पड़ गए। श्रीनगर में 2014 की बाढ़ की यादें ताजा हो गईं, हालांकि तटबंधों ने इस बार कुछ राहत दी।
पंजाब भी आया बाढ़ की चपेट में
पंजाब में सतलुज और रावी नदियों के उफान ने फिरोजपुर के 100 से अधिक गांवों को डुबो दिया। लुधियाना का होजरी उद्योग ठप हो गया, और अमृतसर के खाद्य प्रसंस्करण केंद्र जलमग्न हो गए। उत्तर प्रदेश में गंगा का जलस्तर हरिद्वार में 294.30 मीटर तक पहुंचा, जिससे घाटों पर स्नान बंद करना पड़ा। प्रयागराज में गारापुर-झूंसी मार्ग डूब गया, और गांवों में राशन-दवाएं नावों से पहुंचाई जा रही हैं।
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि बंगाल की खाड़ी से नमी वाली हवाओं और पश्चिमी विक्षोभ ने इस आपदा को और विकराल बनाया। राहत कार्यों में NDRF और SDRF की टीमें लगी हैं, लेकिन सड़कों और पुलों के टूटने से बचाव कार्य बाधित हो रहे हैं। प्रशासन ने लोगों से सुरक्षित स्थानों पर जाने की अपील की है। इस आपदा ने न केवल लाखों लोगों को बेघर किया, बल्कि खेती, उद्योग और बुनियादी ढांचे को भी भारी नुकसान पहुंचाया है।
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