पितरों की विदाई और श्राद्ध का महत्व
21 सितंबर को पितृ पक्ष की अंतिम तिथि है, जिसे सर्वपितृ(Sarva Pitru) मोक्ष अमावस्या या आश्विन अमावस्या(Ashwin Amavasya) के नाम से जाना जाता है। यह दिन उन पितरों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जिनकी मृत्यु किसी भी महीने की अमावस्या तिथि को हुई हो। इसके अलावा, जिन लोगों को अपने पितरों(Sarva Pitru) की मृत्यु तिथि का ज्ञान नहीं है या जो किसी कारणवश पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध कर्म(Shraddha rituals) नहीं कर पाए, वे इस दिन सभी पितरों के लिए धूप-ध्यान और श्राद्ध कर सकते हैं। पितरों के लिए धूप-ध्यान दोपहर के समय, जिसे कुतुप काल कहते हैं, करना सबसे उत्तम माना गया है।
सूर्य ग्रहण और उसका प्रभाव
इस वर्ष 21 सितंबर की रात को सूर्य ग्रहण भी होगा, लेकिन यह ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। यह ग्रहण मुख्य रूप से न्यूजीलैंड और पश्चिमी अंटार्कटिका के क्षेत्रों में ही दिखेगा। भारतीय समयानुसार यह ग्रहण रात 11 बजे से शुरू होकर देर रात 3.24 बजे तक चलेगा। चूंकि यह ग्रहण भारत में नहीं दिखाई देगा, इसलिए इसका सूतक काल भी यहां मान्य नहीं होगा। इसका मतलब है कि भारत में धार्मिक कार्यों और अनुष्ठानों पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा।
श्राद्ध कर्म और दान-पुण्य
सर्वपितृ(Sarva Pitru) मोक्ष अमावस्या को पितरों की विदाई का दिन माना जाता है। इस दिन किए गए श्राद्ध कर्म और दान से पितरों को तृप्ति मिलती है, जिससे वे प्रसन्न होकर अपने लोक लौट जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार, जो लोग इस दिन श्राद्ध और दान-पुण्य नहीं करते हैं, उनके पितर(Sarva Pitru) दुखी होते हैं। इस तिथि पर पवित्र नदियों में स्नान करने, गरीबों को अन्न, वस्त्र और धन का दान करने और गौशाला में गायों को चारा खिलाने का विशेष महत्व है। पितरों की प्रसन्नता के लिए इस दिन पलंग, छाता, घी, दूध और अनाज जैसी वस्तुओं का दान भी किया जाता है।
पितरों के लिए धूप-ध्यान करने का सबसे अच्छा समय क्या है?
पितरों के लिए धूप-ध्यान करने का सबसे अच्छा समय दोपहर का होता है, जिसे कुतुप काल कहा जाता है।
इस वर्ष 21 सितंबर को पड़ने वाला सूर्य ग्रहण भारत में क्यों नहीं मान्य है?
21 सितंबर को होने वाला सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, इसलिए इसका सूतक भी यहां मान्य नहीं होगा और धार्मिक कार्यों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
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