SC का आदेश: राष्ट्रपति 3 महीने में लें फैसला

By digital@vaartha.com | Updated: April 12, 2025 • 7:41 AM

SC का बड़ा निर्देश: राष्ट्रपति राज्यपालों द्वारा भेजे गए विधेयकों पर 3 महीने के भीतर लें निर्णय

भारतीय राजनीति और संविधान के इतिहास में पहली बार, सुप्रीम कोर्ट (SC) ने एक ऐतिहासिक निर्देश दिया है, जिसके अनुसार राज्यपालों द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर निर्णय लेना होगा

यह फैसला न केवल केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संबंधों को स्पष्ट करता है, बल्कि राज्यपालों की भूमिका को लेकर भी एक बड़ी संवैधानिक व्याख्या प्रस्तुत करता है।

मामला क्या था?

यह मामला तमिलनाडु और पंजाब जैसे राज्यों में सामने आया था, जहाँ राज्यपालों ने राज्य विधानसभा से पारित कई विधेयकों को मंजूरी देने में अनावश्यक देरी की।
कुछ विधेयक तो महीनों तक लंबित रहे, और कुछ मामलों में राज्यपालों ने उन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया, लेकिन उन पर फैसला न आने से राज्यों की नीतिगत योजनाएं ठप पड़ गईं।

SC ने क्या कहा?

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट रूप से कहा:

“जब राज्यपाल कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजते हैं, तो उस पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना चाहिए।”

यह पहली बार है जब SC ने राष्ट्रपति की भूमिका को लेकर समय सीमा तय की है, जो अब तक “विवेकाधीन” मानी जाती थी।

SC का आदेश: राष्ट्रपति 3 महीने में लें फैसला

क्यों है यह आदेश अहम?

राज्यों की क्या रही शिकायत?

तमिलनाडु, केरल और पंजाब जैसे राज्यों ने आरोप लगाया कि उनके राज्यपाल राजनीतिक कारणों से विधेयकों पर निर्णय नहीं ले रहे

उदाहरण के लिए:

राष्ट्रपति की भूमिका पर क्या हुआ नया?

अब तक यह माना जाता था कि राष्ट्रपति को किसी भी राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयक पर निर्णय लेने की कोई निर्धारित समयसीमा नहीं है।
लेकिन इस निर्देश के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि तीन महीने के भीतर फैसला ज़रूरी है, चाहे वो मंजूरी हो या अस्वीकृति

SC का आदेश: राष्ट्रपति 3 महीने में लें फैसला

क्या हो सकता है प्रभाव?

संविधान का सम्मान

SC का यह निर्देश भारतीय संघीय ढांचे की मजबूती की दिशा में एक सकारात्मक कदम है। यह सुनिश्चित करता है कि न कोई राज्यपाल अनावश्यक देरी करे, और न ही केंद्र सरकार विधेयकों को लंबित रखे।

यह फैसला केवल एक कानूनी निर्देश नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र में संतुलन की स्थापना की दिशा में मील का पत्थर है। इससे न केवल राज्यपालों की जवाबदेही तय होगी, बल्कि राष्ट्रपति की भूमिका भी अधिक सक्रिय और पारदर्शी बनेगी।

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