सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश पर बोले उपराष्ट्रपति धनखड़
नई दिल्ली पराष्ट्रपति ने कहा कि ‘अब जज विधायी चीजों पर फैसला करेंगे। जज वे ही कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे और सुपर संसद के रूप में काम करेंगे। उनकी कोई जवाबदेही भी नहीं होगी क्योंकि इस देश का कानून उन पर लागू ही नहीं होता।’धनखड़ ने कहा कि न्यायपालिका का कार्य न्यायिक निर्णय देना है, न कि विधायिका के कार्यों में हस्तक्षेप करना। उन्होंने न्यायपालिका के कार्यक्षेत्र की सीमाओं पर जोर दिया और इसे संविधानिक ढांचे के अनुरूप बताया।
संविधानिक संतुलन की आवश्यकता
उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच संतुलन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इन तीनों संस्थाओं को अपने-अपने दायित्वों का पालन करते हुए एक दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
न्यायिक आदेशों पर पुनर्विचार की आवश्यकता
धनखड़ ने कुछ न्यायिक आदेशों पर पुनर्विचार की आवश्यकता जताई, जिनसे संविधानिक संतुलन प्रभावित हो सकता है। उन्होंने विशेष रूप से न्यायपालिका के कार्यों के विधायिका के कार्यों में हस्तक्षेप पर चिंता व्यक्त की।
संविधानिक दृष्टिकोण
धनखड़ ने संविधानिक सिद्धांतों की ओर इशारा किया, जिसमें न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच स्पष्ट सीमाएं निर्धारित हैं। उन्होंने कहा कि इन सीमाओं का उल्लंघन संविधानिक संतुलन को प्रभावित कर सकता है।
संस्थाओं के बीच संवाद की आवश्यकता
उपराष्ट्रपति ने न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच बेहतर संवाद और सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इससे संविधानिक संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी और संस्थाओं के बीच आपसी समझ बढ़ेगी।
ऐसे दिन की कल्पना नहीं की थी’
धनखड़ ने हालात पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ‘अपने जीवन में मैंने ऐसे दिन की कल्पना नहीं की थी।’ उन्होंने कहा कि ‘राष्ट्रपति देश का सबसे सर्वोच्च पद है। राष्ट्रपति संविधान की सुरक्षा की शपथ लेते हैं। जबकि सांसद, मंत्री, उपराष्ट्रपति और जजों को संविधान का पालन करना होता है। हम ऐसी स्थिति नहीं चाहते, जहां राष्ट्रपति को निर्देश दिए जाएं। आपको सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 145 (3) के तहत संविधान की व्याख्या का अधिकार है और वह भी पांच या उससे ज्यादा जजों की संविधान पीठ ही कर सकती है।’