कई पुराणों और ग्रंथों में किया गया हैं वर्णन
वाराणसी बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी (Kashi) को देवों के देव महादेव शिव (Mahadev Shiva) की सबसे प्रिय नगरी कहा जाता है। सनातन धर्म ग्रन्थ में इस बात का वर्णन कई पुराणों और ग्रंथों में भी किया गया हैं। काशी में ही महादेव शिव के 12 प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग में एक प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग, काशी विश्वनाथ स्थित है। यह ज्योतिर्लिंग वाम रूप में स्थापित बाबा विश्वनाथ शक्ति की देवी मां भगवती के साथ विराजते हैं। यह अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है। आइए जानते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर से जुडी रोचक और अनसुनी बातें।
काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़े कुछ तथ्य
काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग दो भागों में है। दाहिने भाग में शक्ति के रूप में मां भगवती विराजमान हैं। दूसरी ओर भगवान शिव वाम रूप (सुंदर) रूप में विराजमान हैं, इसीलिए काशी को मुक्ति क्षेत्र कहा जाता है। देवी भगवती के दाहिनी ओर विराजमान होने से मुक्ति का मार्ग केवल काशी में ही खुलता है। यहां मनुष्य को मुक्ति मिलती है और दोबारा गर्भधारण नहीं करना होता है। भगवान शिव खुद यहां तारक मंत्र देकर लोगों को तारते हैं। अकाल मृत्यु से मरा मनुष्य बिना शिव अराधना के मुक्ति नहीं पा सकता।
श्रृंगार के समय सारी मूर्तियां पश्चिम मुखी होती हैं। इस ज्योतिर्लिंग में शिव और शक्ति दोनों साथ ही विराजते हैं जो अद्भुत है। ऐसा दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता है। विश्वनाथ दरबार में गर्भ गृह का शिखर है। इसमें ऊपर की ओर गुंबद श्री यंत्र से मंडित है। तांत्रिक सिद्धि के लिए ये उपयुक्त स्थान है। इसे श्री यंत्र-तंत्र साधना के लिए प्रमुख माना जाता है।

तंत्र की दृष्टि से 4 प्रमुख द्वार
बाबा विश्वनाथ के दरबार में तंत्र की दृष्टि से 4 प्रमुख द्वार इस प्रकार हैं:- शांति द्वार। कला द्वार। प्रतिष्ठा द्वार। निवृत्ति द्वार। इन चारों द्वारों का तंत्र में अलग ही स्थान है। पूरी दुनिया में ऐसा कोई जगह नहीं है जहां शिवशक्ति एक साथ विराजमान हों और तंत्र द्वार भी हो। बाबा का ज्योतिर्लिंग गर्भगृह में ईशान कोण में मौजूद है। इस कोण का मतलब होता है, संपूर्ण विद्या और हर कला से परिपूर्ण दरबार।
तंत्र की 10 महाविद्याओं का अद्भुत दरबार, जहां भगवान शंकर का नाम ही ईशान है। मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण मुख पर है और बाबा विश्वनाथ का मुख अघोर की ओर है। इससे मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण से उत्तर की ओर प्रवेश करता है, इसीलिए सबसे पहले बाबा के अघोर रूप का दर्शन होता है। यहां से प्रवेश करते ही पूर्व कृत पाप-ताप विनष्ट हो जाते हैं।
ज्ञानवापी में स्वयं विराजते हैं बाबा
भौगोलिक दृष्टि से बाबा को त्रिकंटक विराजते यानि त्रिशूल पर विराजमान माना जाता है। मैदागिन क्षेत्र जहां कभी मंदाकिनी नदी और गौदोलिया क्षेत्र जहां गोदावरी नदी बहती थी। इन दोनों के बीच में ज्ञानवापी में बाबा स्वयं विराजते हैं। मैदागिन-गौदौलिया के बीच में ज्ञानवापी से नीचे है, जो त्रिशूल की तरह ग्राफ पर बनता है, इसीलिए कहा जाता है कि काशी में कभी प्रलय नहीं आ सकता।
बाबा विश्वनाथ काशी में गुरु और राजा के रूप में विराजमान है। वह दिन भर गुरु रूप में काशी में भ्रमण करते हैं। रात्रि 9 बजे जब बाबा का श्रृंगार आरती किया जाता है तो वह राजवेश में होते हैं, इसीलिए शिव को राजराजेश्वर भी कहते हैं। बाबा विश्वनाथ और मां भगवती काशी में प्रतिज्ञाबद्ध हैं। मां भगवती अन्नपूर्णा के रूप में हर काशी में रहने वालों को पेट भरती हैं। वहीं काशी क्षेत्र में मरने वाले लोगों को बाबा मृत्यु के पश्चात तारक मंत्र देकर मुक्ति प्रदान करते हैं। बाबा को इसीलिए ताड़केश्वर भी कहते हैं।

आज भी मंदिर के बगल में मौजूद है कुआं
बाबा विश्वनाथ के अघोर दर्शन मात्र से ही जन्म जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं। शिवरात्रि में बाबा विश्वनाथ औघड़ रूप में भी विचरण करते हैं। उनके बारात में भूत, प्रेत, जानवर, देवता, पशु और पक्षी सभी शामिल होते हैं। बाबा का एक नाम पशुपतिनाथ है। मान्यता है कि जब औरंगजेब इस मंदिर का विनाश करने के लिए आया था, तब मंदिर में मौजूद लोगों ने यहां के शिवलिंग की रक्षा करने के लिए उसे मंदिर के पास ही बने एक कुएं में छिपा दिया था।
कहा जाता है कि वह कुआं आज भी मंदिर के बगल में मौजूद है। कहानियों के अनुसार काशी का मंदिर जो की आज मौजूद है, वह वास्तविक मंदिर नहीं है। काशी के प्राचीन मंदिर का इतिहास कई साल पुराना है जिसे औरंगजेब ने नष्ट कर दिया था। बाद में फिर से मंदिर का निर्माण किया गया जिसकी पूजा-अर्चना आज की जाती है।
रानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था मंदिर का पुनर्निर्माण
काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण इन्दौर की रानी अहिल्या बाई होल्कर ने करवाया था। मान्यता है कि 18वीं शताब्दी के दौरान स्वयं भगवान शिव ने अहिल्या बाई के सपने में आकर इस जगह उनका मंदिर बनवाने को कहा था। रानी अहिल्या बाई के मंदिर निर्माण करवाने के कुछ साल बाद महाराज रणजीत सिंह ने मंदिर में सोने का दान किया था। कहा जाता है कि महाराज रणजीत ने लगभग एक टन सोने का दान किया था जिसका प्रयोग से मंदिर के छत्रों पर सोना चढाया गया था।

मंदिर के ऊपर एक सोने का बना छत्र लगा हुआ है। इस छत्र को चमत्कारी माना जाता है और इसे लेकर एक मान्यता प्रसिद्ध है। अगर कोई भी भक्त इस छत्र के दर्शन करने के बाद कोई भी प्रार्थना करता है तो उसकी वह मनोकामना जरूर पूरी होती है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास क्या है?
काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी में स्थित है। इसका निर्माण 1780 में अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था। यह कई बार आक्रमणकारियों द्वारा तोड़ा गया और पुनर्निर्मित हुआ।
काशी विश्वनाथ मंदिर की क्या खासियत है?
यह मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यहां का स्वर्ण शिखर और नंदी मंडप विशेष आकर्षण का केंद्र हैं। यहां शिवलिंग को “विश्वेश्वर” कहा जाता है।
काशी विश्वनाथ से जल क्यों नहीं लाया जाता है?
मान्यता है कि काशी विश्वनाथ का जल बाहर लाना अपशकुन होता है। शिव स्वयं काशी में जल ग्रहण करते हैं और यहां का जल वहीं अर्पित होना चाहिए।
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