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Shukra Pradosh: शुक्र प्रदोष व्रत कथा का महत्व

Dhanarekha
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Shukra Pradosh: शुक्र प्रदोष व्रत कथा का महत्व

कथा पाठ से मिलते हैं पूर्ण लाभ

प्रदोष(Shukra Pradosh) व्रत हिंदू धर्म का अत्यंत पवित्र व्रत माना जाता है, विशेषकर जब यह शुक्रवार(Friday) को आता है तो इसे शुक्र प्रदोष(Shukra Pradosh) व्रत कहा जाता है। मान्यता है कि इस व्रत की कथा का श्रवण और पाठ करने से परिवार में समृद्धि, शांति और वैवाहिक जीवन में स्थिरता आती है। कथा में जीवन से जुड़े गहरे संदेश दिए गए हैं जो अनुशासन और धार्मिक आचरण का महत्व समझाते हैं

तीन मित्रों की कथा और शिक्षा

कथा के अनुसार एक नगर में तीन मित्र रहते थे—राजकुमार, ब्राह्मण(Brahmin) पुत्र और सेठ पुत्र। राजकुमार और ब्राह्मण पुत्र का विवाह हो चुका था जबकि सेठ पुत्र का गौना बाकी था। स्त्रियों पर चर्चा के दौरान ब्राह्मण पुत्र ने कहा कि जिस घर में स्त्री नहीं होती, वह घर अधूरा होता है। इस बात से प्रभावित होकर सेठ पुत्र ने अपनी पत्नी को तुरंत लाने का निश्चय किया।

माता-पिता ने उसे समझाया कि शुक्र अस्त काल में स्त्रियों को विदा कराना अशुभ होता है, किंतु उसने बात नहीं मानी और ससुराल पहुंच गया। सास-ससुर ने भी रोकने की कोशिश की लेकिन वे विवश होकर पुत्री को विदा करने पर सहमत हुए। विदाई के बाद पति-पत्नी को मार्ग में अनेक कष्ट झेलने पड़े, जैसे बैलगाड़ी का टूटना, बैल का घायल होना और डाकुओं द्वारा लूटपाट।

संकट और समाधान

घर पहुंचने पर दुर्भाग्यवश सेठ पुत्र को सांप ने डस लिया और वैद्य ने उसकी आयु मात्र तीन दिन बताई। दुखी परिवार के लिए यह बड़ा आघात था। ब्राह्मण पुत्र ने सलाह दी कि दंपति को ससुराल भेज दिया जाए क्योंकि अशुभ समय में विदाई ही इन विपत्तियों का कारण है।

जैसे ही दोनों अपने ससुराल लौटे, सेठ पुत्र की हालत में सुधार होने लगा और धीरे-धीरे वह स्वस्थ हो गया। इस घटना से सभी को यह शिक्षा मिली कि ज्योतिषीय समय और धार्मिक नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है। इसके बाद दंपति ने सुखमय जीवन व्यतीत किया।

शुक्र प्रदोष व्रत से क्या लाभ होते हैं?

शुक्र प्रदोष व्रत से दांपत्य जीवन में सुख-शांति बनी रहती है और परिवार में समृद्धि आती है। यह व्रत नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मकता का संचार करता है तथा रोग-शोक से मुक्ति दिलाता है।

कथा सुनने का क्या महत्व है?

कथा का श्रवण करने से व्यक्ति के जीवन में अनुशासन और धार्मिकता बढ़ती है। यह कथा संदेश देती है कि शुभ-अशुभ समय का पालन आवश्यक है और ईश्वर की कृपा से कठिन परिस्थितियों से भी मुक्ति मिल सकती है।

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